मै शायर तो नही, मगर ऐ दोस्तों,
जबसे मैने फेसबुक खोला, उसपर मुझको, शायरी भा गयी।।
मिर्झा गालिब कहते हैं,
उम्रभर गालिब यही भूल करता रहा;
धूल चेहरे पर लगी थी, आईना साफ करता रहा।
ऐसे कहा जाता है,
हैं और भी जमानेमे सुकनवर बहुत अच्छे,
कहते हैं के गालिबका अंदाजे-बयाँ और।
इसमे कोई शक नही, मगर थोडा औरोंका बयान भी देख लेते हैं। मेरे जिन मित्रोंने ये शेर शेयर किये हैं उनका और सभी शायरोंका मै शुक्रगुजार हूँ।
ख्वाइशे, मर्जी
ख्वाइशोंका काफिला भी अजीब है
गुजरता वहींसे है जहाँ रास्ते नही होते।
ज़िंदगी पथराए भी तो ग़म नहीं,
इल्तिजा है मील का पत्थर बने.......
रूह (क्रांति)
हर मोड़ पर इंसान की मर्जी नहीं चलती
जब चलती है उसकी, तो किसी की नहीं चलती।
चलते है फकीरों के इशारो पे शहंशाह
शाहों के इशारो पे फकीरी नहीं चलती।
खुदा से मेरी सिर्फ़ एक ही है दुआ,
गर मैं वसीयत लिखूं उर्दू में, बेटा पढ़ पाए।
(आजके जमानेमे यह बात मराठी, कन्नड, तमिल आदि सभी भारतीय भाषाई लोग सोचते होंगे।)
दर्द
किन लफ्जोंमें बयाँ करूँ अपने दर्दको,
सुननेवाले बहुत हैं, समझनेवाला कोई नही।
हर सफ़र थम जाता है इक आख़िरी सफ़र के बाद।
हर दर्द मिट जाता है इक आख़िरी दर्द के बाद।
न जाने कैसा सुकून होगा मौत की पनाहों में।
कोई लौट के नहीं आता एक बार वहाँ जाने के बाद ।
परेशानी
परेशाँ होने वालों को सकून कुछ मिल भी सकता है,
परेशाँ करने वालों की परेशानी नहीं जाती।
एक बुत मैने तराशा हो, गई सबको खबर ...
शहर के पत्थर सभी अपना पता देने लगे ।
इन्सान घर बदलता है, लिबास बदलता है;
रिश्ते बदलता है, दोस्त बदलता है, फिर भी वो परेशान रहता है,
क्यो कि वो खुद नही बदलता।
कद्र
कद्र करनी है, तो जीतेजी करो,
जनाजा उठाते वक़्त तो नफरत करनेवाले भी रो पड़ते है।
जिंदगी
हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली।
कुछ यादें मेरे संग पांव पांव चली।
सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ।
वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली।।....
हर ख़ुशी से ख़ूबसूरत तेरी शाम कर दूँ,
अपना प्यार और दोस्ती तेरे नाम कर दूँ,
मिल जाए अगर दुबारा यह ज़िंदगी,
हर बार यह ज़िंदगी तुम्हारे नाम कर दूँ ।
गजब
ग़ज़ब की एकता देखी मैंने ,लोगों की ज़माने में।
जो ज़िंदा हैं उसे गिराने की और जो मुर्दा हैं उसे उठाने की ।
इस दुनिया के लोग भी कितने अजीब है ना ;
सारे खिलौने छोड़ कर जज़बातों से खेलते हैं ।
जितनी भीड़ , बढ़ रही ज़माने में..।
लोग उतनें ही, अकेले होते जा रहे है।।।
खुद्दारी
टूटा ज़रूर हूँ मगर बिखरा नहीं अभी तक
किस चीज से बना हूँ मुझको ख़बर नहीं |
हर हकीकत को मेरी ख्वाब समझने वाले,
मैं तेरी नींद उड़ाने के लिये काफी हूँ।
ये अलग बात के अब सुख चुका हूँ फिर भी,
धूप की प्यास बुझाने के लिये काफी हूँ।
हम वक्त और हालात के साथ 'शौक' बदलते हैं,,
दोस्त नही ... !!
होशियारी
सभी तजुर्बों को जहन में उतारना जरूरी नहीं।
गैरों की गलतियों के सबक कब काम आएँगे।।
दोस्त और दुष्मन
भगवान से वरदान माँगा कि दुश्मनों से पीछा छुड़वा दो,
अचानक दोस्त कम हो गए ।।
दुष्मनोंकी मेहफिलमें चल रही थी मेरे कत्लकी बात ।
मैं पहूँचा तो वो बोले यार तेरी उम्र लंबी है।
मेरी पीठ पर जो जख्म हैं ,वो अपनों की निशानी हैं !
....सीना तो, अभी तक दुश्मनों के इंतज़ार में है !!
दोस्तों के साथ जीने का इक मौका दे दे ऐ खुदा,
तेरे साथ तो हम मरने के बाद भी रह लेंगे ।
कुछ दोस्तों से वैसे मरासिम(relationship) नहीं रहे।
कुछ दुश्मनों से वैसी अदावत(enimity) नहीं रही।
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग।
रो रो के बात कहने की आदत नहीं रही।
बोझ
किनारे पर तैरने वाली लाश को देखकर ये समझ आया...
बोझ शरीर का नही साँसों का था...
जबसे मैने फेसबुक खोला, उसपर मुझको, शायरी भा गयी।।
मिर्झा गालिब कहते हैं,
उम्रभर गालिब यही भूल करता रहा;
धूल चेहरे पर लगी थी, आईना साफ करता रहा।
ऐसे कहा जाता है,
हैं और भी जमानेमे सुकनवर बहुत अच्छे,
कहते हैं के गालिबका अंदाजे-बयाँ और।
इसमे कोई शक नही, मगर थोडा औरोंका बयान भी देख लेते हैं। मेरे जिन मित्रोंने ये शेर शेयर किये हैं उनका और सभी शायरोंका मै शुक्रगुजार हूँ।
ख्वाइशे, मर्जी
ख्वाइशोंका काफिला भी अजीब है
गुजरता वहींसे है जहाँ रास्ते नही होते।
ज़िंदगी पथराए भी तो ग़म नहीं,
इल्तिजा है मील का पत्थर बने.......
रूह (क्रांति)
हर मोड़ पर इंसान की मर्जी नहीं चलती
जब चलती है उसकी, तो किसी की नहीं चलती।
चलते है फकीरों के इशारो पे शहंशाह
शाहों के इशारो पे फकीरी नहीं चलती।
खुदा से मेरी सिर्फ़ एक ही है दुआ,
गर मैं वसीयत लिखूं उर्दू में, बेटा पढ़ पाए।
(आजके जमानेमे यह बात मराठी, कन्नड, तमिल आदि सभी भारतीय भाषाई लोग सोचते होंगे।)
दर्द
किन लफ्जोंमें बयाँ करूँ अपने दर्दको,
सुननेवाले बहुत हैं, समझनेवाला कोई नही।
हर सफ़र थम जाता है इक आख़िरी सफ़र के बाद।
हर दर्द मिट जाता है इक आख़िरी दर्द के बाद।
न जाने कैसा सुकून होगा मौत की पनाहों में।
कोई लौट के नहीं आता एक बार वहाँ जाने के बाद ।
परेशानी
परेशाँ होने वालों को सकून कुछ मिल भी सकता है,
परेशाँ करने वालों की परेशानी नहीं जाती।
एक बुत मैने तराशा हो, गई सबको खबर ...
शहर के पत्थर सभी अपना पता देने लगे ।
इन्सान घर बदलता है, लिबास बदलता है;
रिश्ते बदलता है, दोस्त बदलता है, फिर भी वो परेशान रहता है,
क्यो कि वो खुद नही बदलता।
कद्र
कद्र करनी है, तो जीतेजी करो,
जनाजा उठाते वक़्त तो नफरत करनेवाले भी रो पड़ते है।
जिंदगी
हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली।
कुछ यादें मेरे संग पांव पांव चली।
सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ।
वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली।।....
हर ख़ुशी से ख़ूबसूरत तेरी शाम कर दूँ,
अपना प्यार और दोस्ती तेरे नाम कर दूँ,
मिल जाए अगर दुबारा यह ज़िंदगी,
हर बार यह ज़िंदगी तुम्हारे नाम कर दूँ ।
गजब
ग़ज़ब की एकता देखी मैंने ,लोगों की ज़माने में।
जो ज़िंदा हैं उसे गिराने की और जो मुर्दा हैं उसे उठाने की ।
इस दुनिया के लोग भी कितने अजीब है ना ;
सारे खिलौने छोड़ कर जज़बातों से खेलते हैं ।
जितनी भीड़ , बढ़ रही ज़माने में..।
लोग उतनें ही, अकेले होते जा रहे है।।।
खुद्दारी
टूटा ज़रूर हूँ मगर बिखरा नहीं अभी तक
किस चीज से बना हूँ मुझको ख़बर नहीं |
हर हकीकत को मेरी ख्वाब समझने वाले,
मैं तेरी नींद उड़ाने के लिये काफी हूँ।
ये अलग बात के अब सुख चुका हूँ फिर भी,
धूप की प्यास बुझाने के लिये काफी हूँ।
हम वक्त और हालात के साथ 'शौक' बदलते हैं,,
दोस्त नही ... !!
होशियारी
सभी तजुर्बों को जहन में उतारना जरूरी नहीं।
गैरों की गलतियों के सबक कब काम आएँगे।।
दोस्त और दुष्मन
भगवान से वरदान माँगा कि दुश्मनों से पीछा छुड़वा दो,
अचानक दोस्त कम हो गए ।।
दुष्मनोंकी मेहफिलमें चल रही थी मेरे कत्लकी बात ।
मैं पहूँचा तो वो बोले यार तेरी उम्र लंबी है।
मेरी पीठ पर जो जख्म हैं ,वो अपनों की निशानी हैं !
....सीना तो, अभी तक दुश्मनों के इंतज़ार में है !!
दोस्तों के साथ जीने का इक मौका दे दे ऐ खुदा,
तेरे साथ तो हम मरने के बाद भी रह लेंगे ।
कुछ दोस्तों से वैसे मरासिम(relationship) नहीं रहे।
कुछ दुश्मनों से वैसी अदावत(enimity) नहीं रही।
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग।
रो रो के बात कहने की आदत नहीं रही।
बोझ
किनारे पर तैरने वाली लाश को देखकर ये समझ आया...
बोझ शरीर का नही साँसों का था...
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