Wednesday 26 February 2014

निर्वाण षटकम्

आदिशंकराचार्यजीने लिखा निर्वाणषटकम् एक अप्रतिम स्तोत्र या काव्य है।

मै कौन हूँ? इस प्रश्नका उत्तर हम ढूँढते रहते हैं। क्या मेरी आँखे, कान, नाक, जिव्हा आदिसे बना शरीर मै हूँ?
क्या जमीन, जल, वायू, तेज आदि जिन तत्वोंसे ये शरीर बना है वो मै हूँ? क्या मेरा दिमाग, मन, अहंकार मै
हूँ? मै ये सब नही हो सकता क्योंकि ये चीजे मेरी है ऐसे मै मानता हूँ। फिर मै हूँ माने मै क्या हूँ?
इत्यादि अनेक प्रश्नोंका उत्तर श्रीमद् शंकराचार्य देते हैं कि मै इसमेंसे कुछ भी नही हूं, इन सभी चीजोंसे परे, या
उनके ऊपर जो असीम आनंद और मंगलमय परमात्मा है वह मै हूँ। मुझे सुखदुख, राग, लोभ, मोहमाया, पापपुण्य, भेदभाव आदि कुछ माने नही रखता। मातापिता, भाईबहन, गुरुशिष्य आदि मेरे कोई रिश्तेदार नही है। इतनाही नही, मै न किसी बंधनमे हूँ, ना मुक्त हूँ। मेरा ना कोई आकार है, ना रूप है, ना रंग है।

ये सब समझना बहुत मुश्किल है, मगर थोडा भी पल्ले पडे तो वह चौंका देनेवाला है।

निर्वाण षटकम्
मनोबुद्ध्यहंकार चित्तानि नाहं ।  न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रौ।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः। चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। १ ।।

न च प्राणसंज्ञो न वै पंचवायुः । न वा सप्तधातुः न वा पञ्चकोशः।
न वाक्पाणिपादम् न चोपस्थपायु । चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। २ ।।

न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ । मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः । चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। ३ ।।

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं । न मन्त्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता । चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। ४ ।।

न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः । पिता नैव माता नैव न जन्मः।
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यः । चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। ५ ।।

अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो । विभुत्वाच सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्।
न चासङ्गत नैव मुक्तिर्न बन्धः । चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। ६ ।।

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