Sunday 23 February 2014

मंगल मंगल - ६



सौ साल पहले वैज्ञानिकोंने जब दूरबीनके जरिये मंगल ग्रहका अवलोकन किया, तब उन्हे वहाँपर कुछ सीधी रेखाएँ दिखाई दी थी। नदियाँ, पहाड, घाटी आदि जो भी कुदरती रचनाएँ हैं वे अपनी धरतीपर तो कहीं भी सीधी रेखामे नही हैं। दुनियाके किसी भी देशके मानचित्रमें (मॅप) ये सारे टेढेमेढेही दिखते हैं। फिर मंगल ग्रह पर भला वे सीधे कैसे हो सकते हैं? वहाँके बुद्धीमान महामानवोंने जरूर बडे बडे नहर खोदे होंगे इस तरहका अनुमान किसीने लगाया और अन्य सभी लोगोंको यह खयाल बडा अच्छा लगा। यह अफवाह कई सालतक सुनाई जाती थी। वास्तवमे ये रेखाएँ वहाँ मौजूदही नही है, यह एक दृष्टीभ्रम था यह उसकी सचाई अब सामने आ चुकी है। यह भी एक किस्मका मृगजल (माइरेज) था, नजरका धोखा था, मगर एक जमानेमे वह बडे वैज्ञानिकोंको चकमा दे गया था।

अगर कोई व्यक्ती वक्तका बहुतही पाबंद हो तो कहते हैं कि उसके आने जानेको देखकर अन्य लोग अपनी घडी मिलाते हैं। सूरज और चंद्रमाका आसमानमे दिखता अविरत भ्रमण इसी तरह बहुतही नियमित होनेकी वजहसे कालगणनाकी शुरुवातही उन्हे देखकर की जानी लगी और यह सिलसिला आजतक चलता आया है। बुध, गुरू, शुक्र और शनि ये ग्रह अपनी चाल कभी धीमी या तेज करते हैं, कभी एक स्थानपर रुक जाते हैं, या कई दिन उलटी दिशामे चलने लगते हैं। इनमे बुध तथा शुक्र आसमाँमे रातके कम समयमेंही दिखाई देते हैं और गुरू तथा शनि ग्रह बहुतही धीमी गतीसे एकही राशीमें सालोंसाल चलते हैं। इन कारणोंकी वजहसे इन चार ग्रहोंकी अनियमितता स्पष्ट रूपसे कम दिखाई देती है। मंगल ग्रह उनकी तुलनामे कुछ ज्यादा अनियमित है और उसकी टेढी चाल कुछही दिनोंके अवलोकनमे स्पष्ट रूपसे दिखाय़ी देती है। उसकी गती कम या ज्यादा होती रहती है ही, उसका आकार भी कभी छोटा या बडा होता दिखता है, इशी तरह उसकी रोशनी भी कम या जादा होती दिखती है। कभी यह ग्रह अन्य ग्रहोंकी तुलमाने बहुत तेजःपुंज दिखता है, तो कभी बहुत निस्तेजसा लगता है। उसके इस नटखटपनकी वजहसे उसने प्राचीन वैज्ञानिकोंको असमंजसमे डाल रखा था, मंगल ग्रहमे इतना जादा फर्क किस वजहसे होता होगा ये बात उनके समझमे नही आती थी। उसका ढंगसे अध्ययन करना बहुत कठिन लगता था।

भारतीय संस्कृतीमे सभी ग्रहोंको देवता मानकर उनकी पूजा की जाती है। अर्थात वे सभी अपनी मर्जीके मालिक हैं, उन्हे जैसा लगे वैसे वे भ्रमण करें, उन्हे पूछनेवाले हम कौन होते हैं? अधिकांश लोग इस तरहसे सोचते हैं।  ये सारे ग्रह अपने भाग्यविधाताभी है, अपने किस्मकी बागडोर उनके हाथोंमे है ऐसे जो लोग मानकर चलते हैं, वे भला उनके बारेमे कोई सवाल करनेकी उद्दंडता कैसे कर सकते है? मंगल तो भयानक शीघ्रकोपी किस्मका ग्रह है ऐसी धारणा बनी है। फिर वो तो टेढाही चलेगा ना? उसे कौन टोकेगा? शायद इन वजहोंसे भारतीय वैज्ञानिकोंने उस दिशामे कोई प्रयास नही किया होगा। य़ुरोपीय देशोंमे ख्रिश्चन धर्मके प्रसारके बाद वे लोग सिर्फ एक परमेश्वर (गॉड)को मानने लगे। तब किसी ग्रहसे डरना कम हो गया। चार पाँच सदी पहले वहाँके कुछ वैज्ञानिकोंने मंगल ग्रहका बारीकीसे अध्ययन करनेकी शुरुवात की। कई साल कई वैज्ञानिकोंद्वारा इन्ही निरीक्षणोंपर सोचविचार, मनन, चिंतन वगैरा करनेके बाद उसके बारेमें कुछ सुसंगत सिद्धांत स्पष्ट हो गये। आम आदमी जैसे महसूस करता है उस तरह सूरज और अन्य ग्रह पृथ्वीकी परिक्रमा नही करते है, यह केवल एक दृष्टीभ्रम है, असलमे पृथ्वी, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र और शनि सूरजकी परिक्रमा करते रहते हैं यह सत्य सभीने मान लिया। यह होते होते दो सौ सालका समय बीत चुका था।

पृथ्वी सूरजकी एक विशिष्ट गतीसे परिक्रमा करती रहती है और चंद्रमा पृथ्वीकी। उनकी गतिमे कुछ बहुतही सूक्ष्म बदलाव आते हैं। आम आदमी उन्हे महसूस कर नही सकता। बाकी सारे ग्रह अलग अलग राहोंपर चलते हुवे सूरजकी प्रदक्षिणा करते हैं। इस दौरान वे कभी एक दूसरे के पास आने लगते हैं या दूर जाते रहते हैं। उनकी भ्रमणकी गतियाँ भी अलग अलग हैं। इन वजहोंसे पृथ्वीसे देखनेपर उनके भ्रमणमे अनियमितता दिखती है।

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