Wednesday 12 February 2014

मंगल मंगल - ५

नववर्षके दिन मैने यह ब्लॉग शुरू कर दिया, मगर कुछ दिन नियमित रूपसे यहाँ लिखनेके बाद मैं किन्ही अन्य मामलोंमे उलझ गया और बहुत दिन तक यहाँ नही  आ पाया। अब थोडीसी फुरसत मिली है तो अधूरी रखी हुई मंगल मंगल इस लेखमालाका अगला पुष्प समर्पित कर रहा हूँ।  इस दौरान  दो सौसे अधिक पाठकोंने यह ब्लॉग पढा है। मै उनका आभारी हूँ।

मंगल ग्रहका पृष्ठभाग याने उसकी जमीन भी पृथ्वीकी तरह पथराली है, वहाँ भी जमीनके ऊपर वातावरण है, मगर वह बहुत विरल है और उसमे ज्यादा तर कार्बन डायॉक्साईड वायू है। मंगल ग्रहका व्यास (डायामीटर) पृथ्वीके व्यासके आधेसे कुछ ज्यादा है। भूमितीके नियमोंके अनुसार उसका क्षेत्रफल (एरिया) पृथ्वीके क्षेत्रफलके चौथे हिस्सेसे थोडा ज्यादा है और उसका घनफल पृथ्वीके घनफलके आठवे हिस्सेसे कुछ ज्यादा याने करीब सातवा हिस्सा है। मगर मंगल ग्रहकी घनता काफी कम होनेकी वजहसे उसका वस्तुमान (मास) पृथ्वीके नौवे हिस्से जितना ही है। इसके चलते मंगल ग्रहकी सतहपर पृथ्वीकी तुलनामे तीन अष्टमांश इतना गुरुत्वाकर्षण होता है। जो आदमी पृथ्वीपर तीन फीट ऊँची छलाँग लगा सकता है वह मंगलके जमीनपर आठ फीट ऊँची दीवारको कूदकर पार कर सकेगा। मंगल ग्रहके छोटे होनेके बावजूद वहाँ भी हिमालयसे भी ऊँचे परबत और बहुत गहरी खाइयाँ है। आजके युगमे मंगल ग्रहपर द्रवरूप पानी न होनेके कारण वहाँ जलसे भरे सागर, नदियाँ या सरोवर नही है। समुंदरके न होनेसे वहाँ का मीन सी लेव्हल निश्चित किया नही जा सकता तथा उसकी तुलनामे पर्वतीय शिखरोंकी ऊँचाई या खाइयोंकी गहराई नापी नही जा सकती। मंगल ग्रहपर कई जगहोंके पत्थरोंमे लोहेके खनिज हेमेटाइटकी मात्रा अधिक होनेकी वजहसे यह ग्रह दूरसे लाल रंगका दिखाई देता है। मगर दूरबीनसे देखनेपर उसके कुछ हिस्से पीले, हरे या सुनहले रंगोंकी छटा भी दिखाई देती है। मंगल ग्रहपर भी कई ज्वालामुखी पर्वत और रेगीस्तानभी दिखाई देते हैं। वैसे देखा जाये तो सारा ग्रह सूना सा है, उसपर कहीं भी तनिक भी हरियाली या जंगल है ही नही। जिस प्रदेशमे पत्थरोंकी जगह रेत दिखाई देती हो उसे शायद रेगिस्तान मानते होंगे।

मंगल ग्रह भी पृथ्वीकी तरह एक चक्रकी तरह खुदके अक्षपर घूमते हुवे सूर्यकी प्रदक्षिणा करता रहता है। वहाँ का एक दिन २४ घंटेसे आधा घंटा बडा होता है। याने मंगल ग्रहपर भी लगभग अपने जैसेही दिन और रातें होती हैं। मगर यह ग्रह पृथ्वीकी तुलनामे सूरजसे लगभग डेढ गुना दूर होनेकी वजहसे उसे सूरजकी परिक्रमा करनेके लिये करीब दो सालका अवधी लग जाता है। इस ग्रहका अक्ष भी पृथ्वीकी तरह टेढा होनेसे वहाँके दिन और रातोंकी अवधि भी घटती या बढती रहती है और वहाँ भी सर्दी या गरमी के मौसम आते रहते हैं। मगर वहाँपर सिर्फ यही दो ऋतू होते हैं। मंगलकी जमीनपर पानीके न होनेसे वहाँ कभी बरसात होती ही नही, न तो सावन आता है, न तो भादों। मंगल ग्रहके उत्तर और दक्षिण ध्रुवप्रदेश भी हमेशा बहुत ज्यादा ठंडेही रहते हैं और हमेशाबरफसे ढके रहते हैं, मगर यह बरफ पानीसे बना नही होता। वहाँकी हवामेंसे कार्बन डायॉक्साइड वायू जमकर सूखे बरफ (ड्राय आईस) की कई परते वहाँपर जमा हो गयी हैं। मंगल ग्रह सूरजसे दूर होनेकी वजहसे उसे मिलनेवाली रौशनी और प्रकाश पृथ्वीकी तुलनामे आधेसे भी कम है। इसलिये वहाँकी हर जगहका तापमान शू्न्य अंश सेल्सियससे कम होनेसे वहाँ द्रवरूप पानी हो ही नही सकता। मगर वहाँ की कुछ खाइयोंमे जमीनके बहुत नीचे जमा हुवा पानी है ऐसा अनुमान है। मंगलकी हवामेंभी कुछ हिमकण मिले हैं। 

हर वर्ष जाडेकी ऋतूमें अपने हिमालय परबतपर बर्फकी बारिश होती है और वहाँके पहाड नये बरफसे ढके जाते हैं। गरमीके मौसममें हिमालयके बरफका कुछ अंश पिघलकर उसका पानी गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र आदि नदीयोंमे आकर उनमें बाढ आती है। मंगल ग्रहके उत्तर और दक्षिण ध्रुवप्रदेशमें आधा वर्ष दिन और आधा बरस रात होती है, मगर वहाँका आधा वर्ष हमारे दस महीनोंसे भी लंबा होता है। वहाँके दिनके लंबे समयमे कुछ सूखा बरफ पिघलकर वहाँके वातावरणमें कार्बन डायॉक्साइड वायू मिल जाता है और वहाँकी लंबी काली रातोंमें कार्बन डायॉक्साइड वायू जमकर उसकी याने सूखे बरफकी नयी परते जमीनपर छा जाती हैं।

सौ साल पहलेके जमानेमे मंगल ग्रहके बारेमे इससे बहुत जादा जानकारी नही थी। फिरभी पृथ्वीकी तरह मंगल ग्रहपर भी दिन और रात, सर्दी और गरमी, जमीन और हवा वगैरा होती है, इससे इतना तो साबित हो गया था कि यह ग्रह कुछ हदतक पृथ्वीजैसा ही होगा। अगर ऐसा हो तो उस जगहभी सजीवोंकी सृष्टी निर्माण होना संभवनीय लगता था। वैज्ञानिकोंके इस अनुमानने विज्ञानकथा (सायन्स फिक्शन) लिखनेवाले लेखकोंकी प्रतिभाको मानों पंख मिल गये, उनकी कल्पनाशक्तीको बहर आ गया और मंगलवासीयोंके जीवनपर लिखे गये कथा और उपन्यासोंकी बारिश होने लगी। क्या ये मंगलवासी दिखनेमे मानवोंजैसे होंगे? क्या उन्हेंभी मानवोंजैसेही हाथ, पैर, नाक, कान, आँखे वगैरा सारे अवयव होते होंगे? होगे तो उतनेही होंगे या उनकी संख्या कम या ज्यादा होगी? शायद उनके कुछ भिन्न प्रकारके अंग होंगे और हमें जिसका अनुमानही ना हो इस तरहकी संवेदनाएँ उन्हे प्राप्त होती होंगी। इस तरहके सैकडो सवाल उन लेखकोंके मनमे उठे थे और अपनी अपनी सोचके अनुसार उनके जवाब उन्होंने सोचकर उन्हे अपनी रचनाओंके जरिये प्रस्तुत किया था। तश्तरीके आकारके उडनखटोलोंमे बैठकर कुछ मंगलवासीयोंने पृथ्वीवर आवागमन किया, यहाँके कुछ लोगोंने उनके यानोंको जमीनपर उतरते या हवामे उडते हुवे देखा इस तरहकी अफवाहे कई बार फैली थी ।

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