Wednesday 26 February 2014

बारा ज्योतिर्लिंग

द्वादशज्योतिर्लिङ्गानि

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम् ॥१॥

परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥२॥

वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये ॥३॥

एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रात: पठेन्नर:।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ॥४॥


बारा ज्योतिर्लिंगोंके स्थान
१.सोमनाथ ....सौराष्ट्र .... गुजरात
२.मल्लिकार्जुन ..श्रीशैल्य ... आंध्रप्रदेश
३.महाकाल ... उज्जैन ... मध्यप्रदेश
४.ममलेश्वर .. ओंकारेश्वर .. मध्यप्रदेश
५.वैद्यनाथ ... परळी .... महाराष्ट्र
६.भीमाशंकर .. डाकिनी(पुण्याजवळ) महाराष्ट्र
७.रामेश्वर ... सेतुबंध .... तामिलनाडु
८.नागेश्वर ... दारुकावन (औंढ्या नागनाथ) महाराष्ट्र
९.विश्वेश्वर ... वाराणसी ... उत्तर प्रदेश
१०.त्र्यंबकेश्वर .. नाशिक जवळ . महाराष्ट्र
११.केदारनाथ .. हिमालय .. उत्तरांचल
१२.घृष्णेश्वर ... वेरूळ ... महाराष्ट्र

निर्वाण षटकम्

आदिशंकराचार्यजीने लिखा निर्वाणषटकम् एक अप्रतिम स्तोत्र या काव्य है।

मै कौन हूँ? इस प्रश्नका उत्तर हम ढूँढते रहते हैं। क्या मेरी आँखे, कान, नाक, जिव्हा आदिसे बना शरीर मै हूँ?
क्या जमीन, जल, वायू, तेज आदि जिन तत्वोंसे ये शरीर बना है वो मै हूँ? क्या मेरा दिमाग, मन, अहंकार मै
हूँ? मै ये सब नही हो सकता क्योंकि ये चीजे मेरी है ऐसे मै मानता हूँ। फिर मै हूँ माने मै क्या हूँ?
इत्यादि अनेक प्रश्नोंका उत्तर श्रीमद् शंकराचार्य देते हैं कि मै इसमेंसे कुछ भी नही हूं, इन सभी चीजोंसे परे, या
उनके ऊपर जो असीम आनंद और मंगलमय परमात्मा है वह मै हूँ। मुझे सुखदुख, राग, लोभ, मोहमाया, पापपुण्य, भेदभाव आदि कुछ माने नही रखता। मातापिता, भाईबहन, गुरुशिष्य आदि मेरे कोई रिश्तेदार नही है। इतनाही नही, मै न किसी बंधनमे हूँ, ना मुक्त हूँ। मेरा ना कोई आकार है, ना रूप है, ना रंग है।

ये सब समझना बहुत मुश्किल है, मगर थोडा भी पल्ले पडे तो वह चौंका देनेवाला है।

निर्वाण षटकम्
मनोबुद्ध्यहंकार चित्तानि नाहं ।  न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रौ।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः। चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। १ ।।

न च प्राणसंज्ञो न वै पंचवायुः । न वा सप्तधातुः न वा पञ्चकोशः।
न वाक्पाणिपादम् न चोपस्थपायु । चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। २ ।।

न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ । मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः । चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। ३ ।।

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं । न मन्त्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता । चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। ४ ।।

न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः । पिता नैव माता नैव न जन्मः।
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यः । चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। ५ ।।

अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो । विभुत्वाच सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्।
न चासङ्गत नैव मुक्तिर्न बन्धः । चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। ६ ।।

शिवतांडवस्तोत्र


दशहरेके दिन रावणका दहन किया जाता है। उसे सारी अपप्रवृत्तियोंका पुतला मानकर जलाया जाता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर इन छह अंतर्गत दुष्मनोंके, याने षड्रिपुओंके प्रभावके प्रभावकी वजहसे उसने कुछ बहुतही घटिया दुष्ट कृत्य किये थे। मगर उसके व्यक्तित्वका यह एक अंग है।

रावण एक बहादुर और लोकप्रिय राजा भी था। उसके आधिपत्यमे लंकामे स्वर्णयुग आया था। उसके बारेमे लिखे गये कुछ तथ्य, जैसे उसके दस मस्तक होना, अवास्तव है, मगर उसने लिखा हुवा शिवतांडवस्तोत्र उसकी प्रतिभा और पांडित्यका नमूना है।

आज भी यह स्तोत्र उपलब्ध है। इस स्तोत्रको अनेक गायकोंने गाया भी है। उनका गायन सुननेसे इस स्तोत्रकी नादमधुरता स्पष्ट होती है। रावणको संस्कृत भाषा तथा संगीतकला दोनों अच्छी तरहसे अवगत थी इसका यह स्तोत्र एक प्रमाण है।
पं.जसराजजी की आवाजमे शिवतांडवस्तोत्र
http://mp3ruler.com/mp3/shiv_tandav_stotram_pandit_jasraj.html

अन्य गायकोंकी आवाजमे
http://www.youtube.com/watch?v=PoSiBnnvMw0
http://www.youtube.com/watch?v=yZa0gble8EI
http://www.youtube.com/watch?v=9E_HG0fAYEM

रावणकी प्रशंसा करना या उसे अच्छा कहना यह मेरा उद्देश नही है। वह बुराईका प्रतीक तो था ही, मगर उसकी धार्मिक कृती अगर अच्छी लगे तो उसमे कोई बुराई नही होगी।

 महाशिवरात्रीके अवसरपर यह संस्कृत स्तोत्र और उसका हिंदी अनुवाद  प्रस्तुत कर रहा हूँ।  

॥ रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र ॥  

जटाटवीग लज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डम न्निनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥१॥

सघन जटामंडल रूप वन से प्रवाहित होकर श्री गंगाजी की धाराएँ जिन शिवजी के पवित्र कंठ प्रदेश को प्रक्षालित (धोती) करती हैं, और जिनके गले में लंबे-लंबे बड़े-बड़े सर्पों की मालाएँ लटक रही हैं तथा जो शिवजी डमरू को डम-डम बजाकर प्रचंड तांडव नृत्य करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्याण करें।

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥२॥

अति अम्भीर कटाहरूप जटाओं में अतिवेग से विलासपूर्वक भ्रमण करती हुई देवनदी गंगाजी की चंचल लहरें जिन शिवजी के शीश पर लहरा रही हैं तथा जिनके मस्तक में अग्नि की प्रचंड ज्वालाएँ धधक कर प्रज्वलित हो रही हैं, ऐसे बाल चंद्रमा से विभूषित मस्तक वाले शिवजी में मेरा अनुराग (प्रेम) प्रतिक्षण बढ़ता रहे।

धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।
कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

पर्वतराजसुता के विलासमय रमणीय कटाक्षों से परम आनंदित चित्त वाले (माहेश्वर) तथा जिनकी कृपादृष्टि से भक्तों की बड़ी से बड़ी विपत्तियाँ दूर हो जाती हैं, ऐसे (दिशा ही हैं वस्त्र जिसके) दिगम्बर शिवजी की आराधना में मेरा चित्त कब आनंदित होगा।

जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।
मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥४॥

जटाओं में लिपटे सर्प के फण के मणियों के प्रकाशमान पीले प्रभा-समूह रूप केसर कांति से दिशा बंधुओं के मुखमंडल को चमकाने वाले, मतवाले, गजासुर के चर्मरूप उपरने से विभूषित, प्राणियों की रक्षा करने वाले शिवजी में मेरा मन विनोद को प्राप्त हो।

सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥५॥

इंद्रादि समस्त देवताओं के सिर से सुसज्जित पुष्पों की धूलिराशि से धूसरित पादपृष्ठ वाले सर्पराजों की मालाओं से विभूषित जटा वाले प्रभु हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।

ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌ ।
सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥६॥

इंद्रादि देवताओं का गर्व नाश करते हुए जिन शिवजी ने अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया, वे अमृत किरणों वाले चंद्रमा की कांति तथा गंगाजी से सुशोभित जटा वाले, तेज रूप नर मुंडधारी शिवजीहमको अक्षय सम्पत्ति दें।

कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥७॥

जलती हुई अपने मस्तक की भयंकर ज्वाला से प्रचंड कामदेव को भस्म करने वाले तथा पर्वत राजसुता के स्तन के अग्रभाग पर विविध भांति की चित्रकारी करने में अति चतुर त्रिलोचन में मेरी प्रीति अटल हो।

नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥

नवीन मेघों की घटाओं से परिपूर्ण अमावस्याओं की रात्रि के घने अंधकार की तरह अति गूढ़ कंठ वाले, देव नदी गंगा को धारण करने वाले, जगचर्म से सुशोभित, बालचंद्र की कलाओं के बोझ से विनम, जगत के बोझ को धारण करने वाले शिवजी हमको सब प्रकार की सम्पत्ति दें।

प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा-
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥

फूले हुए नीलकमल की फैली हुई सुंदर श्याम प्रभा से विभूषित कंठ की शोभा से उद्भासित कंधे वाले, कामदेव तथा त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दुखों के काटने वाले, दक्षयज्ञविध्वंसक, गजासुरहंता, अंधकारसुरनाशक और मृत्यु के नष्ट करने वाले श्री शिवजी का मैं भजन करता हूँ।

अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌ ।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥

कल्याणमय, नाश न होने वाली समस्त कलाओं की कलियों से बहते हुए रस की मधुरता का आस्वादन करने में भ्रमररूप, कामदेव को भस्म करने वाले, त्रिपुरासुर, विनाशक, संसार दुःखहारी, दक्षयज्ञविध्वंसक, गजासुर तथा अंधकासुर को मारनेवाले और यमराज के भी यमराज श्री शिवजी का मैं भजन करता हूँ।

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-
द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥

अत्यंत शीघ्र वेगपूर्वक भ्रमण करते हुए सर्पों के फुफकार छोड़ने से क्रमशः ललाट में बढ़ी हुई प्रचंड अग्नि वाले मृदंग की धिम-धिम मंगलकारी उधा ध्वनि के क्रमारोह से चंड तांडव नृत्य में लीन होने वाले शिवजी सब भाँति से सुशोभित हो रहे हैं।

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥

कड़े पत्थर और कोमल विचित्र शय्या में सर्प और मोतियों की मालाओं में मिट्टी के टुकड़ों और बहुमूल्य रत्नों में, शत्रु और मित्र में, तिनके और कमललोचननियों में, प्रजा और महाराजाधिकराजाओं के समान दृष्टि रखते हुए कब मैं शिवजी का भजन करूँगा।

कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्‌
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌ ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥

कब मैं श्री गंगाजी के कछारकुंज में निवास करता हुआ, निष्कपटी होकर सिर पर अंजलि धारण किए हुए चंचल नेत्रों वाली ललनाओं में परम सुंदरी पार्वतीजी के मस्तक में अंकित शिव मंत्र उच्चारण करते हुए परम सुख को प्राप्त करूँगा।

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥

देवांगनाओं के सिर में गूँथे पुष्पों की मालाओं के झड़ते हुए सुगंधमय पराग से मनोहर, परम शोभा के धाम महादेवजी के अंगों की सुंदरताएँ परमानंदयुक्त हमारेमन की प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहें।

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥१५।।

प्रचंड बड़वानल की भाँति पापों को भस्म करने में स्त्री स्वरूपिणी अणिमादिक अष्ट महासिद्धियों तथा चंचल नेत्रों वाली देवकन्याओं से शिव विवाह समय में गान की गई मंगलध्वनि सब मंत्रों में परमश्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित, सांसारिक दुःखों को नष्ट कर विजय पाएँ।

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌ ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥१६॥

इस परम उत्तम शिवतांडव श्लोक को नित्य प्रति मुक्तकंठ सेपढ़ने से या श्रवण करने से संतति वगैरह से पूर्ण हरि और गुरु मेंभक्ति बनी रहती है। जिसकी दूसरी गति नहीं होती शिव की ही शरण में रहता है।

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥

शिव पूजा के अंत में इस रावणकृत शिव तांडव स्तोत्र का प्रदोष समय में गान करने से या पढ़ने से लक्ष्मी स्थिर रहती है। रथ गज-घोड़े से सर्वदा युक्त रहता है।

॥ इति शिव तांडव स्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

Sunday 23 February 2014

मंगल मंगल - ६



सौ साल पहले वैज्ञानिकोंने जब दूरबीनके जरिये मंगल ग्रहका अवलोकन किया, तब उन्हे वहाँपर कुछ सीधी रेखाएँ दिखाई दी थी। नदियाँ, पहाड, घाटी आदि जो भी कुदरती रचनाएँ हैं वे अपनी धरतीपर तो कहीं भी सीधी रेखामे नही हैं। दुनियाके किसी भी देशके मानचित्रमें (मॅप) ये सारे टेढेमेढेही दिखते हैं। फिर मंगल ग्रह पर भला वे सीधे कैसे हो सकते हैं? वहाँके बुद्धीमान महामानवोंने जरूर बडे बडे नहर खोदे होंगे इस तरहका अनुमान किसीने लगाया और अन्य सभी लोगोंको यह खयाल बडा अच्छा लगा। यह अफवाह कई सालतक सुनाई जाती थी। वास्तवमे ये रेखाएँ वहाँ मौजूदही नही है, यह एक दृष्टीभ्रम था यह उसकी सचाई अब सामने आ चुकी है। यह भी एक किस्मका मृगजल (माइरेज) था, नजरका धोखा था, मगर एक जमानेमे वह बडे वैज्ञानिकोंको चकमा दे गया था।

अगर कोई व्यक्ती वक्तका बहुतही पाबंद हो तो कहते हैं कि उसके आने जानेको देखकर अन्य लोग अपनी घडी मिलाते हैं। सूरज और चंद्रमाका आसमानमे दिखता अविरत भ्रमण इसी तरह बहुतही नियमित होनेकी वजहसे कालगणनाकी शुरुवातही उन्हे देखकर की जानी लगी और यह सिलसिला आजतक चलता आया है। बुध, गुरू, शुक्र और शनि ये ग्रह अपनी चाल कभी धीमी या तेज करते हैं, कभी एक स्थानपर रुक जाते हैं, या कई दिन उलटी दिशामे चलने लगते हैं। इनमे बुध तथा शुक्र आसमाँमे रातके कम समयमेंही दिखाई देते हैं और गुरू तथा शनि ग्रह बहुतही धीमी गतीसे एकही राशीमें सालोंसाल चलते हैं। इन कारणोंकी वजहसे इन चार ग्रहोंकी अनियमितता स्पष्ट रूपसे कम दिखाई देती है। मंगल ग्रह उनकी तुलनामे कुछ ज्यादा अनियमित है और उसकी टेढी चाल कुछही दिनोंके अवलोकनमे स्पष्ट रूपसे दिखाय़ी देती है। उसकी गती कम या ज्यादा होती रहती है ही, उसका आकार भी कभी छोटा या बडा होता दिखता है, इशी तरह उसकी रोशनी भी कम या जादा होती दिखती है। कभी यह ग्रह अन्य ग्रहोंकी तुलमाने बहुत तेजःपुंज दिखता है, तो कभी बहुत निस्तेजसा लगता है। उसके इस नटखटपनकी वजहसे उसने प्राचीन वैज्ञानिकोंको असमंजसमे डाल रखा था, मंगल ग्रहमे इतना जादा फर्क किस वजहसे होता होगा ये बात उनके समझमे नही आती थी। उसका ढंगसे अध्ययन करना बहुत कठिन लगता था।

भारतीय संस्कृतीमे सभी ग्रहोंको देवता मानकर उनकी पूजा की जाती है। अर्थात वे सभी अपनी मर्जीके मालिक हैं, उन्हे जैसा लगे वैसे वे भ्रमण करें, उन्हे पूछनेवाले हम कौन होते हैं? अधिकांश लोग इस तरहसे सोचते हैं।  ये सारे ग्रह अपने भाग्यविधाताभी है, अपने किस्मकी बागडोर उनके हाथोंमे है ऐसे जो लोग मानकर चलते हैं, वे भला उनके बारेमे कोई सवाल करनेकी उद्दंडता कैसे कर सकते है? मंगल तो भयानक शीघ्रकोपी किस्मका ग्रह है ऐसी धारणा बनी है। फिर वो तो टेढाही चलेगा ना? उसे कौन टोकेगा? शायद इन वजहोंसे भारतीय वैज्ञानिकोंने उस दिशामे कोई प्रयास नही किया होगा। य़ुरोपीय देशोंमे ख्रिश्चन धर्मके प्रसारके बाद वे लोग सिर्फ एक परमेश्वर (गॉड)को मानने लगे। तब किसी ग्रहसे डरना कम हो गया। चार पाँच सदी पहले वहाँके कुछ वैज्ञानिकोंने मंगल ग्रहका बारीकीसे अध्ययन करनेकी शुरुवात की। कई साल कई वैज्ञानिकोंद्वारा इन्ही निरीक्षणोंपर सोचविचार, मनन, चिंतन वगैरा करनेके बाद उसके बारेमें कुछ सुसंगत सिद्धांत स्पष्ट हो गये। आम आदमी जैसे महसूस करता है उस तरह सूरज और अन्य ग्रह पृथ्वीकी परिक्रमा नही करते है, यह केवल एक दृष्टीभ्रम है, असलमे पृथ्वी, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र और शनि सूरजकी परिक्रमा करते रहते हैं यह सत्य सभीने मान लिया। यह होते होते दो सौ सालका समय बीत चुका था।

पृथ्वी सूरजकी एक विशिष्ट गतीसे परिक्रमा करती रहती है और चंद्रमा पृथ्वीकी। उनकी गतिमे कुछ बहुतही सूक्ष्म बदलाव आते हैं। आम आदमी उन्हे महसूस कर नही सकता। बाकी सारे ग्रह अलग अलग राहोंपर चलते हुवे सूरजकी प्रदक्षिणा करते हैं। इस दौरान वे कभी एक दूसरे के पास आने लगते हैं या दूर जाते रहते हैं। उनकी भ्रमणकी गतियाँ भी अलग अलग हैं। इन वजहोंसे पृथ्वीसे देखनेपर उनके भ्रमणमे अनियमितता दिखती है।

 . . . . . . . . . . . .  . ..  . . . . . .. . .  (क्रमशः)

Saturday 15 February 2014

थोडा हँस ले।


भिक्षुक - माई भिक्षा दे. 
महिला  - ले लो महाराज...
भिक्षुक - माई ... ज़रा यह द्वार पार करके बाहर तो आना.
वह द्वार पार करके बाहर आती है. 
भिक्षुक - (उसे पकड़ते हुए ) हा .. हा ... हा ... मैं भिक्षुक नहीं, रावण हूं....
महिला - हा .. हा ... हा ... मैं भी सीता नहीं, कामवाली बाई हूँ  
😜😜😜😊😊
रावण : हा..हा..हा.. सीता का अपहरण करके आज तक पछता रहा हूं, तुम्हें ले जाऊंगा तो मंदोदरी खुश हो जायेगी. मुझे भी कामवाली बाई की ही ज़रूरत है.. 
😅
महिला : हा  हा हा , सीता  को  ढूंढने  सिर्फ राम आऐ थे।
मुझे  ले जाओगे तो  सारी  बिल्डिंग
ढूंढते पहुंच  जाएगी ।।
😈😈😈😈😈

--------------------------------------------------------------------------------------------------
आजका हिंदी ज्ञान
एअर होस्टेस - हवाई सुंदरी 
नर्स - दवाई सुंदरी
लेडी टीचर - पढाई सुंदरी
हाउस मेड - सफाई सुंदरी
.
.
और
बीवी - लडाई सुंदरी




एक शक्स पहले काला, मोटा और नाटा था।
.
.
.
.
उसने टेलीशॉपिंगसे कुछ प्रॉडक्ट्स खरीद लिये।
.
.
.
.
.
.
.
.
अब वह शक्स बेवकूफ भी है।

Wednesday 12 February 2014

मंगल मंगल - ५

नववर्षके दिन मैने यह ब्लॉग शुरू कर दिया, मगर कुछ दिन नियमित रूपसे यहाँ लिखनेके बाद मैं किन्ही अन्य मामलोंमे उलझ गया और बहुत दिन तक यहाँ नही  आ पाया। अब थोडीसी फुरसत मिली है तो अधूरी रखी हुई मंगल मंगल इस लेखमालाका अगला पुष्प समर्पित कर रहा हूँ।  इस दौरान  दो सौसे अधिक पाठकोंने यह ब्लॉग पढा है। मै उनका आभारी हूँ।

मंगल ग्रहका पृष्ठभाग याने उसकी जमीन भी पृथ्वीकी तरह पथराली है, वहाँ भी जमीनके ऊपर वातावरण है, मगर वह बहुत विरल है और उसमे ज्यादा तर कार्बन डायॉक्साईड वायू है। मंगल ग्रहका व्यास (डायामीटर) पृथ्वीके व्यासके आधेसे कुछ ज्यादा है। भूमितीके नियमोंके अनुसार उसका क्षेत्रफल (एरिया) पृथ्वीके क्षेत्रफलके चौथे हिस्सेसे थोडा ज्यादा है और उसका घनफल पृथ्वीके घनफलके आठवे हिस्सेसे कुछ ज्यादा याने करीब सातवा हिस्सा है। मगर मंगल ग्रहकी घनता काफी कम होनेकी वजहसे उसका वस्तुमान (मास) पृथ्वीके नौवे हिस्से जितना ही है। इसके चलते मंगल ग्रहकी सतहपर पृथ्वीकी तुलनामे तीन अष्टमांश इतना गुरुत्वाकर्षण होता है। जो आदमी पृथ्वीपर तीन फीट ऊँची छलाँग लगा सकता है वह मंगलके जमीनपर आठ फीट ऊँची दीवारको कूदकर पार कर सकेगा। मंगल ग्रहके छोटे होनेके बावजूद वहाँ भी हिमालयसे भी ऊँचे परबत और बहुत गहरी खाइयाँ है। आजके युगमे मंगल ग्रहपर द्रवरूप पानी न होनेके कारण वहाँ जलसे भरे सागर, नदियाँ या सरोवर नही है। समुंदरके न होनेसे वहाँ का मीन सी लेव्हल निश्चित किया नही जा सकता तथा उसकी तुलनामे पर्वतीय शिखरोंकी ऊँचाई या खाइयोंकी गहराई नापी नही जा सकती। मंगल ग्रहपर कई जगहोंके पत्थरोंमे लोहेके खनिज हेमेटाइटकी मात्रा अधिक होनेकी वजहसे यह ग्रह दूरसे लाल रंगका दिखाई देता है। मगर दूरबीनसे देखनेपर उसके कुछ हिस्से पीले, हरे या सुनहले रंगोंकी छटा भी दिखाई देती है। मंगल ग्रहपर भी कई ज्वालामुखी पर्वत और रेगीस्तानभी दिखाई देते हैं। वैसे देखा जाये तो सारा ग्रह सूना सा है, उसपर कहीं भी तनिक भी हरियाली या जंगल है ही नही। जिस प्रदेशमे पत्थरोंकी जगह रेत दिखाई देती हो उसे शायद रेगिस्तान मानते होंगे।

मंगल ग्रह भी पृथ्वीकी तरह एक चक्रकी तरह खुदके अक्षपर घूमते हुवे सूर्यकी प्रदक्षिणा करता रहता है। वहाँ का एक दिन २४ घंटेसे आधा घंटा बडा होता है। याने मंगल ग्रहपर भी लगभग अपने जैसेही दिन और रातें होती हैं। मगर यह ग्रह पृथ्वीकी तुलनामे सूरजसे लगभग डेढ गुना दूर होनेकी वजहसे उसे सूरजकी परिक्रमा करनेके लिये करीब दो सालका अवधी लग जाता है। इस ग्रहका अक्ष भी पृथ्वीकी तरह टेढा होनेसे वहाँके दिन और रातोंकी अवधि भी घटती या बढती रहती है और वहाँ भी सर्दी या गरमी के मौसम आते रहते हैं। मगर वहाँपर सिर्फ यही दो ऋतू होते हैं। मंगलकी जमीनपर पानीके न होनेसे वहाँ कभी बरसात होती ही नही, न तो सावन आता है, न तो भादों। मंगल ग्रहके उत्तर और दक्षिण ध्रुवप्रदेश भी हमेशा बहुत ज्यादा ठंडेही रहते हैं और हमेशाबरफसे ढके रहते हैं, मगर यह बरफ पानीसे बना नही होता। वहाँकी हवामेंसे कार्बन डायॉक्साइड वायू जमकर सूखे बरफ (ड्राय आईस) की कई परते वहाँपर जमा हो गयी हैं। मंगल ग्रह सूरजसे दूर होनेकी वजहसे उसे मिलनेवाली रौशनी और प्रकाश पृथ्वीकी तुलनामे आधेसे भी कम है। इसलिये वहाँकी हर जगहका तापमान शू्न्य अंश सेल्सियससे कम होनेसे वहाँ द्रवरूप पानी हो ही नही सकता। मगर वहाँ की कुछ खाइयोंमे जमीनके बहुत नीचे जमा हुवा पानी है ऐसा अनुमान है। मंगलकी हवामेंभी कुछ हिमकण मिले हैं। 

हर वर्ष जाडेकी ऋतूमें अपने हिमालय परबतपर बर्फकी बारिश होती है और वहाँके पहाड नये बरफसे ढके जाते हैं। गरमीके मौसममें हिमालयके बरफका कुछ अंश पिघलकर उसका पानी गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र आदि नदीयोंमे आकर उनमें बाढ आती है। मंगल ग्रहके उत्तर और दक्षिण ध्रुवप्रदेशमें आधा वर्ष दिन और आधा बरस रात होती है, मगर वहाँका आधा वर्ष हमारे दस महीनोंसे भी लंबा होता है। वहाँके दिनके लंबे समयमे कुछ सूखा बरफ पिघलकर वहाँके वातावरणमें कार्बन डायॉक्साइड वायू मिल जाता है और वहाँकी लंबी काली रातोंमें कार्बन डायॉक्साइड वायू जमकर उसकी याने सूखे बरफकी नयी परते जमीनपर छा जाती हैं।

सौ साल पहलेके जमानेमे मंगल ग्रहके बारेमे इससे बहुत जादा जानकारी नही थी। फिरभी पृथ्वीकी तरह मंगल ग्रहपर भी दिन और रात, सर्दी और गरमी, जमीन और हवा वगैरा होती है, इससे इतना तो साबित हो गया था कि यह ग्रह कुछ हदतक पृथ्वीजैसा ही होगा। अगर ऐसा हो तो उस जगहभी सजीवोंकी सृष्टी निर्माण होना संभवनीय लगता था। वैज्ञानिकोंके इस अनुमानने विज्ञानकथा (सायन्स फिक्शन) लिखनेवाले लेखकोंकी प्रतिभाको मानों पंख मिल गये, उनकी कल्पनाशक्तीको बहर आ गया और मंगलवासीयोंके जीवनपर लिखे गये कथा और उपन्यासोंकी बारिश होने लगी। क्या ये मंगलवासी दिखनेमे मानवोंजैसे होंगे? क्या उन्हेंभी मानवोंजैसेही हाथ, पैर, नाक, कान, आँखे वगैरा सारे अवयव होते होंगे? होगे तो उतनेही होंगे या उनकी संख्या कम या ज्यादा होगी? शायद उनके कुछ भिन्न प्रकारके अंग होंगे और हमें जिसका अनुमानही ना हो इस तरहकी संवेदनाएँ उन्हे प्राप्त होती होंगी। इस तरहके सैकडो सवाल उन लेखकोंके मनमे उठे थे और अपनी अपनी सोचके अनुसार उनके जवाब उन्होंने सोचकर उन्हे अपनी रचनाओंके जरिये प्रस्तुत किया था। तश्तरीके आकारके उडनखटोलोंमे बैठकर कुछ मंगलवासीयोंने पृथ्वीवर आवागमन किया, यहाँके कुछ लोगोंने उनके यानोंको जमीनपर उतरते या हवामे उडते हुवे देखा इस तरहकी अफवाहे कई बार फैली थी ।

.  . . . . . .  . . . . . . . . . . . . . . . . (क्रमशः)

Saturday 1 February 2014

वाह क्या बाते कही हैं?

मानवी जिंदगी के बारेमे लिखी हुयी ये बातें आपने अलग अलग सुनी या पढी होगी। किसीने उनका अच्छा संकलन किया है।

ईश्वर का दिया कभी अल्प नहीं होता;
जो टूट जाये वो संकल्प नहीं होता;
हार को लक्ष्य से दूर ही रखना;
क्योंकि जीत का कोई विकल्प नहीं होता।
-------------------

जिंदगी में दो चीज़ें हमेशा टूटने के लिए ही होती हैं:
"सांस और साथ"
सांस टूटने से तो इंसान एकही बार मरता है;
पर किसी का साथ टूटने से इंसान पल-पल मरता है।
---------------------

जीवन का सबसे बड़ा अपराध -
किसी की आँख में आंसू आपकी वजह से होना।
और
जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि -
किसी की आँख में आंसू आपके लिए होना।
--------------------------

जिंदगी जीना आसान नहीं होता; बिना संघर्ष कोई महान नहीं होता;
जब तक न पड़े हथोड़े की चोट; पत्थर भी भगवान नहीं होता।
------------------------

जरुरत के मुताबिक जिंदगी जिओ - ख्वाहिशों के मुताबिक नहीं।
क्योंकि जरुरत तो फकीरों की भी पूरी हो जाती है;
और ख्वाहिशें बादशाहों की भी अधूरी रह जाती है।
-----------------------

मनुष्य सुबह से शाम तक काम करके उतना नहीं थकता;
जितना क्रोध और चिंता से एक क्षण में थक जाता है।
-----------------

दुनिया में कोई भी चीज़ अपने आपके लिए नहीं बनी है।
जैसे: दरिया - खुद अपना पानी नहीं पीता।
        पेड़ - खुद अपना फल नहीं खाते।
       सूरज - अपने लिए हररात नहीं देता।
       फूल - अपनी खुशबु अपने लिए नहीं बिखेरते।
मालूम है क्यों?
क्योंकि दूसरों के लिए ही जीना ही असली जिंदगी है।
----------------------

मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत माँगना;
क्योंकि दे तो एहसान और न दे तो शर्मिंदगी।
------------------------

कभी भी 'कामयाबी' को दिमाग और 'नकामी' को दिल में जगह नहीं देनी चाहिए।
क्योंकि, कामयाबी दिमाग में घमंड और नकामी दिल में मायूसी पैदा करती है।
--------------------------

कौन देता है उम्र भर का सहारा?
लोग तो जनाज़े में भी कंधे बदलते रहते
-----------------------