Monday 6 January 2014

मंगल मंगल - २



सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र और शनि इनमे राहू और केतू इन दो काल्पनिक ग्रहोंको जोडकर नवग्रह  माने गये हैं। उनमेंसे पहले सात ग्रहोंके नाम हप्तेके सात दिनोंको दिये हैं। हर हप्तेमें रविवार और सोमवारके पश्चात मंगलवार आता है, यह नाम उसे मंगल ग्रहसे मिला है। मगर पुराणोंमे मंगल ग्रहको कहींभी कोई महत्वपूर्ण स्थान दिखाई नही देता। पुराणकालमे बृहस्पती (गुरू) देवोके और शुक्राचार्य (शुक्र) दानवोंके गुरू होते थे और अपने अपने समूहोंको अधिकसे अधिक बलवान होनेके लिये वे दोनों मार्गदर्शन करते थे। उनका जिक्र अनेक पौराणिक कथाऔंमे किया जाता है। शनीमहाराजकी कुछ कथाएँ प्रसिद्ध है। उनकी अवकृपासे सभी भीरु लोग डरके मारे काँपते रहते थे। शायद इस डरके मारे शनिग्रहकी गणना देवोंमे होने लगी और जगह जगह उनके मंदिर बनाये गये। आजभी अनेक भक्तजन उनके दर्शन करने और पूजापाठ करनेके लिये बडी संख्यामे शनीमंदिरमें जाते रहते हैं। बेचारा बुध ग्रह भी मंगलकी तरह थोडा उपेक्षितही रहा है। उसका जिक्र भी कहीं नही होता। मगर हर वर्ष श्रावणमासमे महाराष्ट्रमे एक विशेष पट्टचित्रकी रोज पूजा की जाती है, उसमे कुछ अन्य देवताओंके साथ बुधमहाराजका दर्शन होता है। इस चित्रमें उसे हाथीपर सवार हुवे दिखाया जाता है और हर बुधवारके दिन उसकी पूजा की जाती है। मंगल ग्रह नामके देवताकी कोई तसवीर या मूर्ती या उसका कोई मंदिर मैने तो आजतक कहीं नही देखा, न ही उसके बारेमे कोई कथा या कहानी कभी सुनी है। कुछ अन्य देवताओंके विशाल मंदिरोंके बरामदेमे या दीवारोंपर नवग्रहका एक पॅनेल दिखायी देता है, उसमें मंगलग्रहकीभी एक धुंधलीसी छवि दिखायी देती है।  इंटरनेटपर ढूँढनेके बाद मुझे पहली बार उस देवताकी कुछ तसवीरें मिली।

नवग्रहस्तोत्रमें मंगलग्रहका वर्णन कुछ इस तरह किया गया है।
धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणाम्यहम् ।। ३ ।।
इस श्लोकका अर्थ है। धरतीके गर्भसे जन्मे हुवे, बिजलीजैसी चमकदार या प्रकाशमान प्रभाके धनी, हाथमे शक्तीको धारण किये हुवे, कुमारस्वरूप मंगलको मै प्रणाम करता हूँ.। मंगलका जनम धरणीके गर्भमेसे हुवा है ऐसे इस श्लोकमे लिखा है, मगर मंगलके इस जन्मस्थानके बारेमे कभीभी किसीनेभी गंभीरतासे सोचा नही है ऐसा लगता है। खगोलशास्त्रके अनुसार वह ग्रहभी पृथ्वीकी तरह और लगभग पृथ्वीके साथही अलगसे पैदा हुवा होगा।

हर रविवारके दिन सूर्यनमस्कार आदिके जरिये सूर्यकी आराधना तो की जाती है, मगर मंगलवारके दिन कितने लोगोंको मंगल ग्रहकी यादभी कभी आती होगी? महाराष्ट्रमें गणेशजीको मंगलमूर्ती मोरयाभी कहते हैं और मंगलवारके दिन उनकी पूजा, आराधना, प्रार्थना आदि की जाती है। जब कोई संकष्टी चतुर्थी मंगलवारके दिन होती है तब उसे अंगारकी चतुर्थी कहते हैं और उस दिनका महात्म्य कई गुना बढता है ऐसे मानते हैं। उस दिन पौ फटनेसेभी पहले मुंबईमे प्रभादेवी स्थित सिद्धीविनायक मंदिरमें गणेशजीके दर्शनके लिये कतारमे खडे होनेवाले लोगोंकी तादाद अब हजारोमे हो गयी है। मगर अंगारक यह शब्द अंगारसे उत्पन्न हुवा है और लाल रंगके मंगल ग्रहका यह एक नाम है यह जानकारी उनमें कितने लोगोंको होगी?  महाराष्ट्रमें श्रावण महीनेमे हर मंगलवारके दिन मंगलागौरीकी पूजा की जाती है। विवाहित महिलाओंके जीवनमे शादीके बाद पहली मंगलागौरपूजाकी रस्म बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है और वह बहुतही धूमधाम और हर्षउल्लासके साथ मनायी जाती है। इस समारोहके लिये हॉल बुक किये जाते हैं, नजदीकी रिश्तेदार और सभी सखियोंको न्योता दिया जाता है। मगर इन सभी कार्योंमे मंगल ग्रहकी कोई जगह नही होती है और ना ही किसीको उसकी याद आती है। 

सैकडों साल पहले जब घडीजैसे अन्य साधन नही होते थे तब आकाशमे देखकर समयका निर्धारण किया जाता था। आज आसमानमे दिखनेवाले किसीभी ग्रहमें किसीकोभी कोई रुचि होती ही नही। स्कूलकी पढाईमें कभी सूर्यमालिकापर एकाध पाठ पढा होगा। 'बॉर्नव्हिटा क्विझ काँटेस्ट' किंवा 'कौन बनेगा करोडपती' जैसे प्रोग्रामोंमे उसके बारेमे कोई सवाल पूछा गया तो उस ज्ञानकी याद कभी कभार आती होगी। अन्यथा बहुतही कम लोग खगोलशास्त्रमें (अॅस्ट्रॉनॉमीमें) जरासीभी दिलचस्पी लेते हैं। जमीनपर बढती हुवी बिजलीके दीपोंकी कृत्रिम रोशनी और धुवेकी वजहसे हवामे बढता हुवा धुंधलापन इनकी वजहसे आजकल आसमानके सितारे ठीकसे दिखाई देतेही नही। फिर उन्हे गौरसे देखनेकी और उनके बारेमे कोई जानकारी रखनेकी चेष्टा कौन करेगा? मुंबईजैसे महानगरोंमे तो सिमेंटकाँक्रीटके घने जंगल होते हैं। अपने घरकी खिडकीसे आसमानका हजारवाँ हिस्सा शायद दिखाई देता है। आसमानके उतनेसे टुकडेमे आकर आपको दरसन देनेकी कृपा कौनसे ग्रह या सितारें करेगे ? 

मेरे बचपनमे हम लोग अकसर घरके छतपर सोया करते थे। सभी तरफ घना अंधेरा और ऊपर आसमानमे चमचमाते सितारे होते थे। उन्हे देखते हुए वे जानेपहचानेसे हो गये थे। लगभग सभी ग्रह हररोज कुछ समयके लिये आसमानमे पधारतेही है। रातमे नींद आनेसे पहले या सुबह जागनेसे पहले उनका दर्शन होता था। अपनी गलीमे किस घरमे कौन रहता है यह जैसे अपनेआप समझमे आ जाता है, उसी तरह कौनसा ग्रह रातके किस समय आसमानमे कहाँ होता है इसका पता रहता था। वे किस तरह एक राशीमेसे दूसरी राशीमे जाते हुवे आगे बढते रहते हैं इसका यथार्थ समझमे आता था । मानों मेरी उनसे जानपहचानसी हो गयी थी। ये सुंदर और तेजस्वी मित्र कभी रुष्ट होकर मेरा कुछ बिगाडेंगे ऐसा डर उन्हे देखते हुवे मुझे कभी नही लगा था। मगर आजके जीवनमे इन आकाशस्थ ग्रहोंसे किसीका कोई नाता नही रहा। मनुष्यके मनमे हमेशा अज्ञातका डर (फियर ऑफ अननोन) रहता आया है। इसी कारण इतिहासपूर्व कालमे जिस तरह कई लोग ग्रहोंसे डरते थे शायद उस तरह आजके लोग भी उनसे डरने लगे हैं। चंद होशियार लोग ज्योतिषी बनकर इस बातका लाभ उठानेका प्रयास करेंगेही। आजकल किसीभी पत्रिका या अखबारमे कहीं ना कहीं राशीभविष्य दिया होता है। कुछ लोग सबसे पहले उसी पन्नेको देखते हैं। हर किसी टीव्ही चॅनलपर राशीभविष्य बतानेवाले बाबा जरूर पधारते रहते हैं। शहरके कोनेकोनेमे उनकी दुकाने लगी रहती है। उनसे मिलनेवालोंकी तादाद इतनी अधिक होती है कि उनसे मिलनेके लिये अॅपॉइंटमेंट लेने पडते है। ऐसे भोले लोगोंको डरानेके वास्ते मंगल ग्रह काफी फायदेमंद होता है।   

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