Friday 17 January 2014

मंगल मंगल - ४


मेरा बचपन एक छोटेसे गाँवमे बीता। उन दिनों घरोंमे टेलिव्हिजन नही होता था और हमारे स्कूलमे कोई होमवर्क नही दिया जाता था। बिजलीके सप्लायका कोई भरोसा नही रहता था, वह कभीभी गायब हो जाती थी। या  उसकी व्होल्टेज बहुत कम होनेकी वजहसे उसकी धीमी रोशनीमे पढाई करनेमे न मन लगता था, न उसकी कोई जरूरत होती थी। कोई काम न होनेसे पूरा समय अपनाही होता था। बहुतसे लोगोंके घरोंमे बिजलीके तारभी नही लगे थे। गांवके सडकोंपर स्ट्रीटलाइटिंग नही के बराबरही होती थी। इस वजहसे सभी लोगोंको अपने सारे आवश्यक काम दिनभरकी रोशनीमेही करनेकी आदतसी हो गयी थी। शामके समय हम मैदान मे खेलने जाते थे तो अंधेरा होनेसे पहले घर वापस आना पडता था। थोडी देर बाद रातका खाना खाकर सोनेकी तैयारी शुरू हो जाती थी। बारिश या बहुत तेज हवा न हो तो हम बच्चेलोग प्रायः घरके छतपरही बिस्तर लगाकर लेटे हुवे आपसमे गपशप, मस्ती या एकदूसरेकी खिंचाई करते सो जाते थे। उस समय चारों ओर छाया हुवा घना अंधेरा और ऊपर आसमानमे चमकते चाँदसितारे इतनाही नजर आता था। नींद आनेतक उन्हेही देखते रहते थे। उनमेसे ज्यादा चमकीले तारे या तारकासमूहोंके नाम जान लिये थे और उनके दर्शन बार बार होते रहनेकी वजहसे उनको पहचानने लगे थे। अपनी गलीमे किस घरमे कौन रहते हैं इसका जैसे अपने आप पता लगही जाता है, उसी तरह कौनसे प्रमुख तारे और ग्रह रातके कौनसे वक्त आसमानमे किस जगह दिखायी देते हैं इसका पता लगने लगा था, उनमे रोज जो जरासा बदलाव आता था वह भी समझमे आने लगा था। सबसे निराला लाल रंगका मंगल ग्रह भी रातमे सोनेसे पहले या भोर भये उठनेसे पहले नजर आताही था और वह कब आसमाँमे रहता है इसका अंदाजा रहता था। वह उस वक्त कौनसी राशीमे और क्यूँ है इसका विचार करनेकी हमें जरूरत नही होती थी, न ही हमसे ये उम्मीद की जाती थी।

मगर बहुत प्राचीन कालसे कई विद्वान लोगोंने इन ग्रह और तारोंका सूक्ष्म अध्ययन किया और उनके भ्रमणके नियमोंको अच्छी तरहसे जान लिया। उस जानकारीके आधारपर खगोलशास्त्रका (अॅस्ट्रॉनॉमीका) विकास होता रहा। जिस कालमे कोई कॅलेंडर या डायरी नही हुवा करता थी उन दिनोंमे धरतीपर हो रही घटनाएँ कब हुई यह याद रखनेके या दूसरेको बतानेके लिये उनको आसमानमे हो रही घटनाओंके साथ जोडा जाता था। जिस दिन किसी राजकुमारका जन्म हुवा या किसी राजाकी मृत्यू हुई उस दिन सूरज, चंद्रमा, गुरू और शनि किन राशीमे थे इतनी जानकारी रखी जाती थी। इससे वह दिन तय हो जाता है। आज इस समय ये चार ग्रह जिन राशीयोंमे है उन्ही विशिष्ट स्थानोंपर वे चारों ग्रह साठ साल बादही दोबारा आएँगे। वक्तकी इतनी जानकारी एक औसत व्यक्तीके जीवनके लिये काफी होती है। जब जमीनपर और आकाशमे हो रही घटनाओंको इस तरह जोडा जाने लगा तब कुछ विद्वानोंने ऐसा सोचा कि जमीनपर होनेवाली घटनाएँ आसमानमे होनेवाले स्थित्यंतरसे प्रभावित होती होंगी। जमीनपर कल या परसों क्या होनेवाला है इसका पता आज नही रहता, मगर आकाशमे सारे ग्रह निश्चित गतीसे घूमते रहते हैं। कल, परसोंही नही, हफ्ते, महीने या सालोंके बादभी वे कौनसी राशीमे होंगे इसका पता गणित करनेसे लग जाता है। फिर उनकी स्थितीके अनुसार यहाँपर कोई शुभ या अशुभ घटना हो सकती है इस तरहकी अटकले लगायी जाने लगी और उसमेसे से ज्योतिषशास्त्रका (अॅस्ट्रॉलॉजीका) जन्म हुवा। सामान्य लोगोंको आसमाँसे ज्यादा जमीनपर होनेवाली घटनाओंकी फिक्र रहती है। इस वजहसे खगोलशास्त्रकी (अॅस्ट्रॉनॉमीकी) तुलनामे ज्योतिषशास्त्र (अॅस्ट्रॉलॉजी) ज्यादा पॉप्युलर हो गयी। न जाने क्यूँ, बेचारा मंगल ग्रह एक सुंदर और मंगलमय ग्रह होनेके बदले एक खतरनाक, दुष्ट और गुस्सैला पापग्रह बन बैठा।

सूरज, तथा सभी तारोंको पूर्व दिशामे उगते हुवे और आसमानमेसे गुजरते हुवे पश्चिम दिशामे अस्त होते हुवे हर कोई आदमी रोज देखता है। सूरज भलेही बहुत प्रकाशमान हों मगर उसका बिंब एक फुटबॉलजितनाही दिखता हैं। ग्रह और तारे तो एक बिंदूजैसे छोटे दिखते हैं। अपनी विशाल पृथ्वी इस विश्वके केंद्रस्थानपर होगी और सूरज, तथा सभी छोटे छोटे तारे उसे प्रदक्षिणा करते होंगे ऐसा लगता है। चार पाँचसो वर्ष पहलेतक सभी लोग ऐसाही मानते भी थे। मगर कोपरनिकस, केपलर, गॅलीलिओ आदि युरोपियन वैज्ञानिकोंने नयी जानकारी खोज निकाली और विश्वके बारेमे नये क्रांतीकारक विचार प्रस्तुत किये। उनके जीवनकालमे उन्हे स्वीकारा नही गया था, मगर उनके बाद आये वैज्ञानिकोंने उनके सिद्धांतोंको तर्कके आधारपर स्वीकार लिया। उनके बाद कई वैज्ञानिक आकाशस्थ ग्रहोंकी ओर अधिक ध्यान देने लगे। दूरबीनका आविष्कार होनेसे उसके सहारे आकाशका अध्ययन बारीकीसे होने लगा। तरह तरहकी और अधिकाधिक शक्तीशाली दूरबिने तथा अनेक अन्य उपकरण बनते गये और उनके माध्यमसे आकाशस्थ गोलोंकी कई तरहकी जानकारी उपलब्ध हई।

अन्य ग्रहोंकी तुलनामे मंगल ग्रह पृथ्वीसे नजदीक है, उसपर ध्यान देना स्वाभाविक था। जो मंगल ग्रह अपनी आँखोसे देखनेपर मात्र एक बिंदू नजर आता था, वह दूरबीनके सहारे काफी बडा दिखने लगा। वह सूर्यकी तरह विशालकाय तो नही है, पृथ्वीसेभी थोडा छोटा है इसका अंदाजा आ गया। वहाँकी जमीन, हवा, तपमान वगैराको गौरसे देखकर उस जमीन या वातावरणमें कौनकौनसे घटक कितनी मात्रामें उपलब्ध हैं इनकाभी अनुमान लगाया गया। जैसे ये जानकारी बढती गयी और उस ग्रहके बारेमे उत्सुकता या आकर्षणभी बढता गया।


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