Wednesday 1 January 2014

मंगल मंगल - १


मंगलम् भगवान विष्णुः । मंगलम् गरुङध्वजः ।। मंगलम् पुण्डरीकाक्षः । मंगलायतनो हरिः ।।
विख्यात, ज्येष्ठ और श्रेष्ट गायक पंडित जसराजजीके गायनके जितने कार्यक्रम मैने सुने हैं, उनको अपने गायनकी शुरुवात इस श्लोकके साथ करते हुवे सुना है। उससे एक मंगलमय माहौल बन जाता है। मेरे इस पहले हिन्दी ब्लॉगकी शुरुवातभी मंगलमय हो और उसमे मुझे सफलता मिले ऐसी प्रार्थनाके साथ मै अपना यह पहला लेख लिखनेकी कोशिश कर रहा हूँ। इसी हेतु मैने मंगल यह विषयभी चुना है। 

अंधेरी रातमें आसमानमें लाखों सितारे टिमटिमाते हुए दिखायी देते हैं। उनमेंसे जो स्पष्ट रूपसे दिखते हैं उनके समूह (काँस्टेलेशन्स) सप्तर्षी, बिग बेअर आदि नामोंसे जाने जाते हैं। किसीभी समय हमें आकाशका आधा हिस्सा दिखाई देता है और आधा हिस्सा जमीनके नीचे छिपा रहता है। वस्तुतः आकाशमें जो सितारे दिखाई देते हैं वे सारे अपनी जगहपरही स्थित रहते हैं, मगर पृथ्वीके घूमनेकी वजहसे हमे वे आकाशमार्गमे पूरबसे पश्चिमकी तरफ चलते हुवे दिखाई देते हैं। पश्चिम क्षितिजपर पहूँचनेके बाद वे जमीनके नीचे जाकर अदृष्य होते हैं और जमीनके नीचे छिपे हुवे दूसरे तारे पूर्वदिशासे उदित होकर आसमानमें आकर चमकने लगते हैं। इस पूरे गोलाकार नभोमंडलके बारा समान हिस्से बनाये गये और उनके हर हिस्सेमे जो सितारे दिखते हैं उनके समूहोंको मेष, वृषभ, मिथुन आदि राशियोंके नाम दिये गये है। हर राशी माने आकाशका एक बटा बारावा हिस्सा होता है।

आकाशमे दिखनेवाले इन असंख्य सितारोंमें पाँच तेजोगोल सबसे निराले हैं। अन्य सितारोंकी अपेक्षा वे जादा प्रकाशमान हैं और किसीभी राशीमें शामिल नही होते हैं। इसका मतलब वे जिस किसी राशीमें याने आसमानके जिस हिस्सेमे दिखते हों उस राशीके अन्य सितारोंके धीरे धीरे करीब आते हुवे और बादमें उनसे दूर जाते हुवे दिखाई देते हैं। दूर जाते जाते वे उस राशीको पार करके दूसरे राशीमे प्रवेश करते हैं, फिर तीसरेमे, चौथीमें इस तरह ये ग्रह सभी बारा राशियोंमे भ्रमण करते रहते हैं। उन पाँच गोलोंकी ये विशेषता देखते हुवे उनके लिये ग्रह नामकी अलग श्रेणी बनायी गयी। प्राचीन कालमें ग्रह इस शब्दका अर्थ सिर्फ प्लॅनेट इतना सीमित नही था। सूरज और चंद्रमाको भी वे लोग ग्रह ही कहते थे। उनके साथ मंगळ, बुध, गुरू, शुक्र और शनि इन पाच ग्रहोंको लेकर सात दिनोंको उनके नामसे जाना गया। इस तरहसे इन सातोंको लेकर सात दिनका सप्ताह बन गया।

हररोज सूर्योदयके साथ दिन शुरू होता है और सूरजके डूबनेके बाद रात। दिन और रातका अवधी छह महिनेतक लगातार बढता रहता है और छह महीनेतक वह घटता रहता है, मगर दिन और रात मिलाकर हमेशा चौबीस घंटेही होते हैं। इन दोनो अवधियोंको मिलाकर वर्षका अवधी तय हुवा। अमावास्याकी रातमे चंद्रमा बिलकुलही दिखाई नही देता। असलमें उस रातभर वह आसमानमे होताही नही, बल्कि दिनभर सूरजके साथ उसके बगलमे रहता है और उसका अंधकारमय हिस्सा पृथ्वीकी तरफ होनेकी वजहसे सूरजकी तेज रोशनीमे वह बिलकुलही नही दिखता है। उसके बाद हर दिन चंद्रमाका उदय और अस्त थोडी थोडी देरसे होनेकी वजहसे वह सूरजसे दूर दूर जाता हुवा दिखता है और उसका आकार धीरे धीरे बढता है। पूनमकी शाम सूरजके डूबनेके साथ पूर्ण गोलाकार चाँदका आसमानमे आगमन होता है और रातभर रोशनी देकर वह सुबह होते अस्तंगत होता है। उसके बादभी वह हररोज थोडी देरसेही आसमानमे आता है और उसका आकार घटता रहता है। आखिर अमावास्याको वह फिरसे गायब हो जाता है। चंद्रमाके इस चक्रके अनुसार महीनेका अवधी तय हो गया। इस तरह दिन, महीना और वर्षका कालावधी सूर्य और चंद्रकी गतिसे निश्चित किया गया।

पुराने जमानेमे न तो किसीके कलाईपर घडी होती थी, न किसीके घरकी दीवारपर। उन दिनों दिनमें सूरज और रातमें चाँदतारोंको देखकर समयका सही अंदाजा लगाया जाता था। कब कौनसा प्रहर चल रहा है यह तो इन्हे देखकर हर किसीके समझमे आता था, जिन्हे खगोलशास्त्रकी थोडीसी जानकारी हो उन विद्वान लोगोंको कौनसा महीना और कौनसी तिथी चल रही होगी उसका पता आसानीसे लग जाता था। जब मुद्रणयंत्र (प्रिंटिंग प्रेसेस) नही थे, तब किसीके पास कोई डायरी, कॅलेंडर, पंचांग आदि नही हो सकता था। समयके बारेमे सारी जानकारी बस आसमानमे देखकरही मिलती थी।

दिन, रात, तिथी, महीना आदि जो कालावधी सूर्यचंद्रसे तय किये जाते हैं वे हर वर्ष रिपीट होते रहते हैं। इस वजहसे सूरज और चंदाको देखकर वर्षोंकी गिनती नही की जा सकती। मगर मनुष्यकी आयु सामान्य रूपसे कई वर्ष होती है और करीब करीब उतनेही साल उसकी यादें भी उसके साथ रहती हैं। जिन दिनों कोई कॅलेंडर या पंचांग नही होता था, साल, वर्ष या संवतकी कोई गिनती नही होती थी, तब कोई घटना भूतकालमें कब घटी ये कैसे बताएँ? इस गुत्थीको सुलझानेके लिये बृहस्पती या गुरू और शनि इन दो ग्रहोंके आकाशमार्गपर होनेवाले चलनका उपयोग किया गया। ये दोनों ग्रह बहुत धीमी गतीसे भ्रमण करते रहते है। सभी बारा राशीयोंमें घूम कर राशीचक्रको पार करनेमे गुरू ग्रहको बारा साल लग जाते हैं। इसका मतलब वह हर राशीमें एक सालभर रहता है। आजकल गुरू ग्रह मिथुन राशीमें चल रहा है। वह वृषभ राशीमे या एक साल पहले होगा या तेरह या पच्चीस या सैंतीस साल पहले। शनि ग्रह तो हर एक राशीमेंसे ढाई सालमे गुजरता है और उसे पूरी परिक्रमा करते करते तीस साल लगते है।  आजकल वह तूल राशीमें है, इसका मतलब वह सिंह राशीमे ३-४ साल या ३३-३४ साल पहले होता होगा। गुरू और शनि इन दोनों ग्रहोंके स्थान देखकर हम साठ सालतककी अवधीमे गुजरे हुवे वर्ष तय कर सकते हैं। आम आदमीके लिये इतना काफी है।

बुध ग्रह हमेशा सूरजके आसपासही रहता है। सूर्योदयसे पहले और सूर्यास्तके बादभी आकाशमे जो आभा रहती है उसकी वजहसे बुध ग्रहका दर्शन आसानासे नही होता। यह ग्रह बहुत उपेक्षित है। मैने किसीभी संदर्ऊमे उसका जिक्र कभी सुना नही, न तो उसकी कोई मूर्ती या मंदिर कहीं देखा। शुक्र ग्रह सबसे ज्यादा प्रकाशमान होता है। वह भी सूरजसे बहुत दूर कभी जाता नही। सू्योदयके पहले या सूर्यास्तके बाद कुछ घंटोंके लिये आसमानमे रहता है। मगर जब रहता है तब आप उसे देखे बिना नही रह सकते। अगर चंद्रमा आकाशमें न हो तो शुक्रही वहाँ राज करता है। मगर कालगणना करनेके वास्ते शुक्रका कोई उपयोग नही होता। आजकल वह सूर्यास्तके बाद पश्चिम दिशामे दिखता है और बहुत सुंदर दिखता है।

अब बचा मंगल ग्रह। यह ग्रह बहुतही नटखट है। कभी वह बहुत ज्यादा प्रकाशमान होता है तो कभी बहुत मंद हो जाता है। कभी उसका आकार बडा दिखता है तो कभी छोटा। कभी वह एक राशीको डेढ महीनेमे लाँघ लेता है तो कभी उतनीही यात्राके लिये उसे पाच छह महिने भी लगते है। और तो और, हर साल एकाध बार वह अपनी जगहपर अड जाता है या वक्री होकर उलटी दिशामें चलने लगता है। कुठ दिन पीछे की ओर जानेके बाद दुबारा घूमजाओ करता है और सीधे रास्तेपर आ जाता है। उसकी इस अनिश्चितताके कारण मंगल ग्रहका कालगणनामे कुछ उपयोग नही होता। उसके भ्रमणमे दिख रही इस उच्छृंखलताने वैज्ञानिकोंको काफी असमंजसमे डाल रखा था। मगर यह भी सच है कि उसी उलझनको सुलझाते सुलझाते सूर्यमालिकाका रहस्य खुल गया था। मंगल ग्रहकी एक और विशेषता यह है कि सिर्फ यह एकही लाल रंगका सितारा है। हिंदू संस्कृतीनुसार लाल रंग शुभ और मांगल्यका प्रतीक होता है। इसी कारण इस ग्रहका नाम 'मंगल' रखा गया होगा। रवि माने सूर्यसे रविवार और सोम याने चंद्रसे सोमवार इनके बाद मंगलवारका क्रम आता है।

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