Friday 28 November 2014

जरा सोचिये

"जब मुझे यकीन है के भगवान मेरे साथ है।  तो इस से कोई फर्क नहीं पड़ता के कौन कौन मेरे खिलाफ है।।"

तजुर्बे ने एक बात सिखाई है..  .एक नया दर्द ही...  पुराने दर्द की दवाई है...!!

हंसने की इच्छा ना हो...तो भी हसना पड़ता है... कोई जब पूछे कैसे हो...?? तो मजे में हूँ कहना पड़ता है..

ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों.... यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है.
"माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती.. यहाँ आदमी आदमी से जलता है...!!"

मंदिर में फूल चढ़ा कर आए तो यह एहसास हुआ कि... पत्थरों को मनाने में, फूलों का क़त्ल कर आए हम।
गए थे गुनाहों की माफ़ी माँगने .... वहाँ एक और गुनाह कर आए हम ....

जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन  क्यूंकिएक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले .!!.

एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली.. वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे..!!

सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से.. पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!

सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब.... बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता |

जीवन की भाग-दौड़ में - क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ? हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है..

एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम और आज कई बार बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..

कितने दूर निकल गए, रिश्तो को निभाते निभाते.. खुद को खो दिया हमने, अपनों को पाते पाते..

लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है, और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते..

"खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ, लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह करता हूँ..

चाहता तो हु की ये दुनियाबदल दू .... पर दो वक़्त की रोटी केजुगाड़ में फुर्सत नहीं मिलती दोस्तों

युं ही हम दिल को साफ़ रखा करते थे . पता नही था की, 'किमत चेहरों की होती है!!'

अगर खुदा नहीं हे तो उसका ज़िक्र क्यों ?? और अगर खुदा हे तो फिर फिक्र क्यों ???

"दो बातें इंसान को अपनों से दूर कर देती हैं, एक उसका 'अहम' और दूसरा उसका 'वहम'..

" पैसे से सुख कभी खरीदा नहीं जाताऔर दुःख का कोई खरीदार नही होता।"

किसी की गलतियों को बेनक़ाब ना कर, 'ईश्वर' बैठा है, तू हिसाब ना कर

Thursday 23 October 2014

दीपावली शुभ कामनाएँ





आज आपके यहाँ धन की बरसात हो ।
माँ लक्ष्मी का वास हो ।
संकटोंका नाश हो ।
हर दिलपर आप का राज हो ।
सरपर उन्नती का सरताज हो ।
घर में शांती का वास हो ।

दीपावली के शुभ अवसरपर शुभ कामनाएँ ।

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इस दीपावली पर

इतने दीपक जलाएं .. कि अँधेरा डरकर भाग जाए
इतना प्यार लुटाएं .. कि दुनिया से नफ़रत मिट जाये
इतनी मिठाइयाँ बाँटें  ..  कि भारत से भूख मिट जाये
इतनी गर्मजोशी से हाथ मिलाएं  ..  कि सारी दुश्मनी मिट जाए। 

अपने मन्दिर के साथ-साथ एक मस्जिद, एक गुरुद्वारे, एक गिरजे में भी दीपक लगाएं
ताकि भारत से धार्मिक उन्माद हट जाए।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक हमारा भारत अनगिनत दीपों की आवली से सज जाए।
हम सभी भारतवासी प्रेम की अमिट डोर से बन्ध जाएं
और दीपावली का यह पर्व सचमुच सार्थक हो जाए।

Saturday 20 September 2014

रिश्ते या पतंग की डोर

बाप पतंग उड़ा रहा था बेटा ध्यान से देख रहा था। थोड़ी देर बाद बेटा बोला, "पापा ये धागे की वजह से पतंग और ऊपर नहीं जा पा रही है इसे तोड़ दो।"
बाप ने धागा तोड़ दिया, पतंग थोडा सा और ऊपर गई और उसके बाद नीचे आ गई।
तब बाप ने बेटे को समझाया, "बेटा जिंदगी में हम जिस ऊँचाई पर है, हमें अक्सर लगता है की कई चीजे हमें और ऊपर जाने से रोक रही है। जैसे घर, परिवार, अनुशासन, दोस्ती, और हम उनसे आजाद होना चाहते है।
मगर यही चीज होती है जो हमें उस ऊँचाई पर बना के रखती है। उन चीजों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे, मगर बाद में हमारा वो ही हश्र होगा, जो पतंग का हुआ। इसलिए जिंदगी में कभी भी अनुशासन का, घर का, परिवार का, दोस्तों का, रिश्ता कभी मत तोड़ना।"



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Saturday 19 July 2014

संस्कृत सुभाषितोंका परिचय - २

सुभाषितोंकी मधुरता अपरंपार है।  सुभाषितोंका माधुर्य देख शराब (द्राक्षा) उदास (म्लान) हो गयी, शक्कर पत्थरके चूर्णके समान हो गयी और अमृत डरके मारे स्वर्गमे चली गयी। (सुभाषितोंका रस शराब, शक्कर और
अमृतसेभी अधिक मधुर होता है।)
सुभाषितोंकी संख्याका ध्यान रखते हुवे पचास सुभाषित पहले विभागमें रखकर अब यह दूसरा विभाग शुरू कर रहा हूँ।
पहले विभागके सारे सुभाषित इस लिंकपर पढे जा सकते हैं।
http://anandjikapitara.blogspot.in/2014/03/blog-post_30.html
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आजका सुभाषित

७५. निर्गुणेष्वपि सत्वेषु दयां कुर्वन्ति साधवः ।
न हि संहरते ज्योत्स्नाम् चन्द्कश्चांडालवेश्मनः।।
सज्जन लोग गुणहीनों पर भी दया करते हैं। चंद्रमा उसका प्रकाश चांडाल के घर पर से समेट नही लेता। (वह सभी लोगों को एक जैसा ही प्रकाश देता है।
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 उदारस्य तृणम् वित्तम् शूरस्य मरणम् तृणम् ।
विरक्तस्य तृणम् भार्या निःस्पृहस्य  तृणम् जगत् ।।
७४. उदार मनुष्य धनदौलत को तृण के समान तुच्छ समझता है। शूर पुरुषको मृत्यू तुच्छ लगता है। विरागी पुरुष को पत्नी महत्व हीन लगती है और निःस्पृह व्यक्ती को सारा संसार तुच्छ लगता है।. जिस प्रकार के व्यक्ती को जिस चीज की आसक्ती न हो वह चीज औरोंको भलेही बहुत महत्वपूर्ण लगती हो, उस व्यक्ती को वह घास जितनी तुच्छ प्रतीत होती है।

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विद्वत्वम् च नृपत्वम् च नैव तुल्य कदाचन ।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान सर्वत्र पूज्यते ।।
७३. विद्वत्ता और राजा (सत्ताधीश) होना इनकी तुलना नही हो सकती।. राजा को केवल उसके राज्य मे पूजनीय माना जाता है, राजाका (शासकका) सम्मान  केवल उसी सीमा तक किया जाता है। मगर विद्वानका सम्मान सर्वत्र होता है।

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 नारिकेलसमाकाराः दृष्यन्ते खलु सज्जनाः ।
अन्ये बदरिकाकाराः बहिरेव मनोहराः ।।
७२. सज्जन लोग नारियल के बाहरी रूप जैसे दिखते हैं और अन्य लोग बेर के समान बाह्य रूप से सुंदर होते हैं।
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 सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्धम् त्यजति पण़्डितः ।
अर्धेन कुरुते कार्यम् सर्वनाशोहि दुःसहः ।।
७१. सर्वनाश का समय आनेपर ज्ञानी मनुष्य आधेका त्याग करता है और बचाये हुवे आधे भाग से अपना काम चलाता है क्यों कि सर्वनाश सहन करना अधिक कठिन होता है।.

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परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्याः ।
परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थमिदम् शरीरम् ।।
७०. दूसरोंकी भलाई के लिये वृक्ष फल देते हैं, दूसरोंकी भलाई के लिये नदियाँ बहती हैं, दूसरोंकी भलाई के लिये गायें दूध देती हैं,  हमें यह शरीर दूसरोंकी भलाई के लिये ही मिला हैं।
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महाजनस्य संसर्गः कस्य नोन्नतिकारकः ।
पद्मपत्रस्थितम् तोयम् धत्त् मुक्ताफलश्रियम् ।।
६९. महापुरुषों के सहवास से किसकी उन्नति नही होती? (सभी की होती है।) कमल के पत्र पर पडी हुई पानी की बूँद मोती की सी शोभा धारण करती है।
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यथाचित्तम् तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रियाः।
चित्ते वाचि क्रियायाम् च साधूनामेकरूपता ।।
६८. जो मन में है वही वाणी से प्रकट हो। जो बोला गया है उसी के अनुसार तसेच कार्य हो। सज्जनों के मन, वचन और कार्य में एकरूपता होती है। जैसी कथनी वैसी ही करनी होती है।


स्वंत्रतादिन के सुअवसर पर यह सुभाषित


अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते ।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।।
६७. हे लक्ष्मण, यह सोनेकी लंका मुझे नही भाती। मेरी माँ तथा जन्मभूमी (मातृभूमी) मुझे स्वर्ग से भी श्रेष्ठ प्रतीत होती है। लंकाविजय के पश्चात श्रीरामजीने वही रहनेका सुझाव दिया गया था, उस पर श्रीरामजीने यह उत्तर दिया था। 
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आरोप्यते शिला शैले यत्नेन महता यथा ।
पात्यते तु क्षणेनाधः तथात्मा गुणदोषयोः ।।
६६. पर्वतपर शिला चढाने के लिये बहुत कष्ट उठाने पडते है, परंतु उसे एक क्षण में नीचे गिराया जा सकता है। उसी तरह सद्गुण प्राप्त करना बहुत कठिन होता है, पर दुर्गुण अनायास ही प्राप्त होते है।
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खद्योतो द्योतते तावत् यावन्नोदयते शशी ।
उदिते तु सहस्रांशौ न खद्योतो न चन्द्रमा ।।
६५. जब तक चंद्र का उदय नही होता तब तक तारा या जुगनू चमकता है और सूर्योदय होने के बाद ना चंद्र चमकता है, ना तारे या ना जुगनू। जहाँ कोई महान व्यक्तिमत्व उपस्थित हो वहाँ किसी भी छोटे व्यक्ती का प्रभाव सीमित रहता है।

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गुणम् पृच्छस्व मा रूपम् , शीलम् पृच्छस्व मा कुलम् ।
सिद्धिम् पृच्छस्व मा विद्याम्, भोगम् पृच्छस्व मा धनम् ।।
६४. गुणोंके बारेमे विचार करो रूपके बारेमे नही, शीलके बारेमे विचार करो कुलके बारेमे नही, सिद्धीके बारेमे विचार करो विद्याके बारेमे नही, उपभोगके बारेमे विचार करो धनके बारेमे नही। मनुष्य के रूप, कुल, विद्या और धन इनकी पेक्षा उसके गुण, शील, यश और विनियोग इनका महत्व अधिक रहता है।
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अप्रार्थितानि दुःखानि यथैवायान्ति देहिनाम् ।
सुखानिच तथा मन्ये दैवमत्रातिरिच्यते।।
जिस प्रकार  प्रार्थना किये बिना दुख मिलते हैं, वैसे ही सुख भी मिल जाते हैं। इसमें दैव ही बलवत्तर होता है ऐसे मै मानता हूँ।.
६३. भाग्यसे सिर्फ दुख ही नही, सुख भी मिल जाते हैं इस तरह का अर्थ भी इस सुभाषित से निकाला जा सकता है।
यह संपूर्णतया दैववादी सिद्धान्त है। दुख से बचने या सुख पाने के वास्ते प्रयत्न ही न करें यह भी सही नही है। वह करने चाहिये ऐसे अन्य कई सुभाषितोंमे कहा गया है।

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एकस्य दुःखस्य न यादवन्तम् ।
गच्छाम्यहम् पारमिवार्णवस्य ।
तावत् द्वितीयम् समुपस्थितम् मे ।
छिद्रेष्वनर्था बहुलीभवन्ति ।।
६२. मै ज्योंही एक दुःखसागरको पार कर लेता हूँ, दूसरा दुःखसागर सामने आ जाता है। छिद्र (कमजोरी) हो तो वहाँ अनर्थोंकी भरमार हो जाती है। (अपने किसी कमजोरीकी वजहसेही बहुतसे अनर्थ हो जाते हैं। कई दुखोंका कारण अपनाही कोई दोष होता है।)
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अलातम् तिन्दुकस्येव मुहूर्तमपि हि ज्वल ।
मा तुषाग्निरिवानर्चि धूमायस्व चिरम् पुनः ।।
६१. मशालकी तरह थोडेही समयके लिये क्यूँ ना हो, ज्वाला बनकर प्रकाश दे। चिरकालतक सिर्फ धुवाँ छोडते मत रहना। लंबी आयु जीनेसे छोटा पर तेजस्वी जीवन जीना बहतर है।

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 अधः करोषि रत्नानि मूर्ध्ना धारयसे तृणम् ।
दोषस्तवैव जलधे, रत्नम् रत्नम् तृणम् तृणम् ।।
६०. हे सागर, तुम रत्नोंको नीचे तलमें रखते हो और घासको अपने मस्तकपर धारण करते हो यह तुम्हाराही दोष है। आखिर रत्न रत्न ही होता है और घास घासही होती है। (हर किसीकी योग्यता समझ लेनी चाहिये और उसे
योग्य स्थान देना चाहिये।)

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यदीच्छसि वशीकर्तुम् जगदेकेण कर्मणा ।
परापवादसस्येभ्यो गाम् चरन्तीम् निवारय ।।
५९.  यदि संसारको अपने बसमे कर लेनेकी चाह हो तो एकही काम करो। परनिन्दारूपी फसलमे चरनेवाली अपनी बुद्धीरूपी गायको ठीकसे सम्हालो। (लोगोंको अपना बनाना हो तो परनिंदा करनेसे हमें बचना चाहिये।)
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चंदने विषधरान् सहामहे वस्तु सुंदरमगुप्तिमत्कुतः।
रक्षितुम् वद किमात्मसौष्ठवम् संचिताः खदिर कंटकास्त्वया।
५८. चंदनके पेडसे नाग लिपटे रहते है यह बात हम सहन कर सकते (समझ सकते) हैं। सुंदर वस्तूको असुरक्षित कैसे रख सकते है? मगर हे बबूल तू इन काटोंसे कौनसे सौंदर्यकी रक्षा कर रहे हो यह बात क्या तुम बता सकते
हो?
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आहार निद्रा भय मैथुनम् च सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम्।
धर्मोहि तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीना पशुभिः समानाः।।
५७. आहार, निद्रा, भय और मैथुन ये बातें मानव तथा पशू इन दोनोंमे समान होती है। मानवका धर्म यही एक विशेष (पशूओंसे अलग) बात है, धर्महीन मानव हा पशूसमान होता है।
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 वाङ्माधुर्यात् सर्वलोकप्रियत्वम् ।
वाक्पारुष्यात् सर्वलोकाप्रियत्वम् ।
किंवा लोके कोकिलेनोपकारः ।
किंवा लोके गर्दभेणाप्रकारः।।
५६. मधुर भाषणसे संसारमे लोकप्रियता मिलती है, पर कठोर वचनसे हम सब लोगोंमे अप्रिय हो जाते है। कोयलने संसारका कौनसा बडा उपकार किया है? (जो उसे लोकप्रियता मिली।) और गधेने किसीका क्या बुरा किया है? (जो वह किसीको नही भाता।)
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भद्रम् कृतम् कृतम् मौनम् कोकिलैः जलदागमे ।
दर्दुराः यत्र गायन्ति तत्र मौनं हि शोभनम् ।।
५५. आसमानमे काले बादल घिर आतेही (वर्षा ऋतूके प्रारंभ होतेही) कोयलोंने मौन धारण किया यह बात बहुत अच्छी हुई। जब मेंढकोंने गाना शुरू कर दिया हो, वहाँ (कोयलोंने) चुप रहनेमेही शोभा है।

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को न याति वशे लोके मुखे पिंडेन पूरितः ।
मृदुंगो मुखलेपेन करोति मधुरम् ध्वनिम् ।।
५४. मुखमें कुछ खाना खिलानेपर कौन बसमें नही आयेगा? मृदंगके मुखपर आटेका गोल थापनेपर वह भी तो मधुर आवाज करने लगता है। (संसारमे सारेही लोग खिलाने पिलानेपर खुष होकर मीठा बोलने लगते है।)
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माता यदि विषम् दद्यात् विक्रिणीते पिता सुतम् ।
राजा हरति सर्वस्वम् तत्र का परिवेदना ।।
५३. अगर माताही उसके बच्चेको जहर दे, पिताही बेटेको बेच दे और राजाही प्रजाका सर्वस्व लूट ले तो इसकी शिकायत कहाँ और कैसे करें? (अगर रक्षकही भक्षक न जाये तो क्या करे? बडीही मुश्किल होगी।)
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धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ।
तस्मात् धर्मो न हन्तव्यः मा नो धर्मः हतोsवधीत् ।।
५२. अगर कोई धर्मका नाश करेगा तो धर्म उसका नाश करता है और जो धर्मका रक्षण करता है उसका रक्षण धर्म करता है। हमे धर्मका नाश नही करना चाहिये ताकि वह अपना नाश नही करेगा। (सुभाषितोंकी रचनाके
कालमे  अलग अलग धर्म नही होते थे, धर्म इस शब्दका अर्थ नीतीनियम होता था)
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न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धाः । न ते वृद्धाः ये न वदन्ति धर्मम् ।। 
न असौ धर्मो यत्र न सत्यमस्ति । न तत्सत्यम् यच्छलेनाभ्युपेतम् ।।
५१. जहाँ वृद्ध जन न हो वह सभा नही, जो धर्म - नीतीकी बातें न करते हो वे वृद्ध नही, जिसमें सत्य न हो वह धर्म नही और जो कपटसे भरा हो वह सत्य नही। निष्कपट सत्य ही वास्तविक धर्म है जो वृद्ध जनोंके मुखसे
निःसृत होता है।

Tuesday 17 June 2014

पितृदिन (फादर्स डे) के अवसरपर

पिताजी आज भी पैसे बचाते है .....
पुरानी पँट रफू करा कर पहनते जाते है, ब्रँडेड नई शर्ट देने पे आँखे दिखाते है,
टूटे चश्मे से ही अख़बार पढने का लुत्फ़ उठाते है, टोपँझ के ब्लेड से दाढ़ी बनाते है,
पिताजी आज भी पैसे बचाते है .....

कपड़े का पुराना थैला लिये दूर की मंडी तक जाते है,
बहुत मोल-भाव करके फल-सब्जी लाते है, आटा नही खरीदते, गेहूँ पिसवाते है,
पिताजी आज भी पैसे बचाते है .....

स्टेशन से घर पैदल ही आते है, रिक्शा लेने से कतराते है,
सेहत का हवाला देते जाते है ... बढती महंगाई पे चिंता जताते है,
पिताजी आज भी पैसे बचाते है .....

पूरी गर्मी पंखे में बिताते है,.. सर्दियां आने पर रजाई में दुबक जाते है,
एसी हीटरको सेहत का दुश्मन बताते है,  लाइट खुली छूटने पे नाराज हो जाते है,
पिताजी आज भी पैसे बचाते है .....

माँ के हाथ के खाने में रमते जाते है, बाहर खाने में आनाकानी मचाते है,
साफ़-सफाई का हवाला देते  जाते है, मिर्च, मसाले और तेल से घबराते है,
पिताजी आज भी पैसे बचाते है .....

गुजरे कल के किस्से सुनाते है, कैसे ये सब जोड़ा गर्व से बताते है,
पुराने दिनों की याद दिलाते है,  बचत की अहमियत समझाते है,
हमारी हर मांग आज भी, फ़ौरन पूरी करते जाते है,
अब पता लगा पिताजी हमारे लिए ही पैसे बचाते है ...

पितृदिन (फादर्स डे) के दिन सभी पिताओंको सादर प्रणाम ।
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बाप रे बाप !
एक छोटा बच्चा अपने पिताके साथ भीडसे भरे रास्तेपरसे जा रहा था । उसने अपने पितासे कहा, "पिताजी, मेरा हाथ पकडके रखिये, नही तो मै खो जाऊँगा।"
पिताने कहा, "अरे तुम्हे अगर इतनी फिक्र हो रही हो, तो तुमही मेरी उँगली थामे रखना।"
बेटेने कहा, "नही, शायद मेरा ध्यान इधर उधर गया तो मै आपकी उँगली छोड दूँगा, मगर चाहे कुछभी हो जाये,आप कभीभी मेरा हाथ नही छोडेंगे।"
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दूसरे एक बच्चेको उसके पिताने एक टेबलपर खडा किया और नीचे कूदने कहा। बोले, "डरो मत, मै हूँ ना।"
बच्चा कूद पडा, मगर बापने उसे पकडाही नही। वो औंधे मुँह गिर पडा।
पिताने उसे पूछा, "बेटा, तुमने इससे कौनसी सीख ली?"
बेटेने कहा, "अपने बापपरभी कभी भरोसा नही करना चाहिये।"
पिताने कहा, "बिलकुल सही कहा। अब तुम अच्छी तरहसे धंदेको सम्हालोगे।"

Monday 2 June 2014

ये जो है जिंदगी

इस पोस्ट में दी हुई कोई भी रचना मेरी खुदकी नही है। ये मुझे इंटरनेटपर मिली है। मै इनके कविवर्योंको नही जानता मगर उनका शुक्रगुजार हूँ।

क्या से क्या होते देखा है।

मैंने  हर रोज जमाने को रंग बदलते देखा है ....
उम्र के साथ जिंदगी को ढंग बदलते देखा है .. !!

वो जो चलते थे तो शेर के चलने का. होता था गुमान..
उनको भी  पाँव उठाने के लिए सहारे को तरसते देखा है !!

जिनकी नजरों की चमक देख सहम जाते थे लोग ..
उन्ही  नजरों को  बरसात  की तरह  रोते देखा है .. !!

जिनके  हाथों के  जरा से इशारे से  टूट जाते थे पत्थर ..
उन्ही  हाथों को  पत्तों की तरह  थर थर काँपते देखा है .. !!

जिनकी आवाज़ से कभी  बिजली के कड़कने का  होता था भरम ..
उनके  होठों पर भी जबरन  चुप्पी का ताला लगा देखा है .. !!

ये जवानी  ये ताकत  ये दौलत  सब कुदरत की. इनायत है ..
इनके रहते हुए भी  इंसान को  बेजान हुआ देखा है ... !!

अपने  आज पर  इतना ना  इतराना  मेरे यारों ..
वक्त की धारा में अच्छे अच्छों को  मजबूर हुआ देखा है .. !!!

  कर सको तो किसी को खुश करो....
  दुःख देते तो हजारों को देखा है.. ।

२३ ऑगस्ट २०१५

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आहिस्ता चल ज़िन्दगी, अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है।
कुछ दर्द मिटाना बाकी है, कुछ फ़र्ज़ निभाना बाकी है।

रफ्तार में तेरे चलने से कुछ रूठ गए, कुछ छूट गए ।
रूठों को मनाना बाकी है, रोतो को हँसाना बाकी है ।

कुछ हसरतें अभी अधूरी है, कुछ काम भी और ज़रूरी है ।
ख्वाइशें जो घुट गयी इस दिल में, उनको दफनाना अभी बाकी है ।

कुछ रिश्ते बनके टूट गए, कुछ जुड़ते जुड़ते छूट गए।
उन टूटे-छूटे रिश्तों के ज़ख्मों को मिटाना बाकी है ।

तू आगे चल में आता हूँ, क्या छोड़ तुझे जी पाऊंगा ?
इन साँसों पर हक है जिनका , उनको समझाना बाकी है।

आहिस्ता चल जिंदगी , अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है ।

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 ये जो ज़िन्दगी की किताब है।
ये किताब भी क्या खिताब है।
कहीं एक हसीं सा ख्वाब है।
कही जान-लेवा अज़ाब है।

कहीं छांव है कहीं धूप है।
कहीं और ही कोई रूप है।
कई चेहरे हैं इसमे छिपे हुये।
एक अजीब सा ये निकाब है।

कहीं खो दिया कहीं पा लिया।
कहीं रो लिया कहीं गा लिया।
कहीं छीन लेती है हर खुशी।
कहीं मेहरबान ला-ज़वाब है।

कहीं आंसू की है दास्तान।
कहीं मुस्कुराहटों का है बयान।
कहीं बरकतों की हैं बारिशें।
कहीं तिशनगी बेहिसाब है।

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जो चाहा कभी पाया नहीं,
जो पाया कभी सोचा नहीं,
जो सोचा कभी मिला नहीं,
जो मिला रास आया नहीं,
जो खोया वो याद आता है,
पर जो पाया - संभाला जाता नहीं।।

क्यों अजीब सी पहेली है ज़िन्दगी,
जिसको कोई सुलझा पाता नहीं ?
जीवन में कभी समझौता करना पड़े
तो कोई बड़ी बात नहीं है,
क्योंकि  झुकता वही है जिसमें जान होती है,
अकड़ तो मुरदे की पहचान होती है।

ज़िन्दगी जीने के दो तरीके होते है!
पहला: जो पसंद है उसे हासिल करना सीख लो.!
दूसरा: जो हासिल है उसे पसंद करना सीख लो.!

जिंदगी जीना आसान नहीं होता;
बिना संघर्ष कोई महान नहीं होता.!

जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है;
कभी हंसाती है तो कभी रुलाती है;
पर जो हर हाल में खुश रहते हैं;
जिंदगी उनके आगे सर झुकाती है।

चेहरे की हँसी से हर गम चुराओ;
बहुत कुछ बोलो पर कुछ ना छुपाओ;
खुद ना रूठो कभी पर सबको मनाओ;
राज़ है ये जिंदगी का बस जीते चले जाओ।

"गुजरी हुई जिंदगी को कभी याद न कर,
तकदीर मे जो लिखा है उसकी फरियाद न कर।
जो होगा वो होकर रहेगा,
तु कलकी फिक्र मे अपनी आज की हँसी बर्बाद न कर।
हंस मरते हुये भी गाता है
और ... मोर नाचते हुये भी रोता है।।

 . .. .  . . . . . . . . . . . . . .  आंतर्जालसे. कविः अज्ञात

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ज़िन्दगी से बड़ी सज़ा ही नही,
और क्या जुर्म है पता ही नहीं |
इतने हिस्सों में बट गया हूँ मैं,
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं ।|

ज़िन्दगी, मौत तेरी मंज़िल है,
दूसरा कोई रास्ता ही नहीं ।
सच घटे या बड़े तो सच न रहे,
झूठ की कोई इन्तहा ही नहीं ।|

ज़िन्दगी, अब बता कहाँ जाएँ,
ज़हर बाज़ार में मिला ही नही ।
जिसके कारण फ़साद होते हैं
उसका कोई अता-पता ही नही ।।

धन के हाथों बिके हैं सब क़ानून,
अब किसी जुर्म की सज़ा ही नही ।
कैसे अवतार कैसे पैग़म्बर,
ऐसा लगता है अब ख़ुदा ही नही ।।

उसका मिल जाना क्या, न मिलना क्या
ख्वाब-दर-ख्वाब कुछ मज़ा ही नही ।
जड़ दो चांदी में चाहे सोने में,
आईना झूठ बोलता ही नहीं ।|

अपनी रचनाओं में वो ज़िन्दा है
‘नूर’ संसार से गया ही नहीं

~कृष्ण बिहारी 'नूर'

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महँगी से महँगी घड़ी पहन कर देख ली,
वक़्त फिर भी मेरे हिसाब से कभी ना चला ...!!"

युं ही हम दिल को साफ़ रखा करते थे ..
पता नही था की, 'कीमत चेहरों की होती है...!!'

मुझे जिंदगी का इतना तजुर्बा तो नहीं,
पर सुना है सादगी में लोग जीने नहीं देते...!!'


 

Friday 4 April 2014

कौन है आपका दुष्मन?

एक दिन सभी कर्मचारी जब ऑफिस पहुंचे तो उन्हें गेट पर एक बड़ासा नोटिस लगा दिखा।
"इस कंपनीमें जो व्यक्ति आपको आगे बढ़ने से रोक रहा था कल उसकी मृत्यु हो गयी है।
हम आपको उसे आखिरी बार देखनेका मौका दे रहे हैं, कृपया बारी-बारी से मीटिंग हॉलमें जाएं और उसे देखनेका कष्ट करें।"
जो भी नोटिस पढता उसे पहले तो दुख होता लेकिन फिर जिज्ञासा हो जाती की आखिर वो कौन था जिसने उस की प्रगतीको रोक रखा था। और वो हॉल की तरफ चल देता। देखते देखते हॉलके बाहर काफी भीड़ इकठ्ठा हो गयी, गार्ड्सने सभीको रोक रखा था और उन्हें एक-एक करके ही अन्दर जाने दे रहे थे।
सबने देखा की अन्दर जाने वाला व्यक्ति काफी गंभीर होकर बाहर निकलता, मानो उसके किसी करीबी की मृत्यु हुई हो!
इस बार अन्दर जानेकी बारी एक पुराने कर्मचारीकी थी। उसे सब जानते थे, सबको पताथा कि उसे हर एक चीजसे शिकायत रहती है। कंपनीसे, सहकर्मियोंसे, वेतनसे, हर एक चीज से!
पर आज वो थोडा खुश लग रहा था। उसे लगा कि चलो जिसकी वजहसे उसकी जिंदगीमें इतनी समस्याएँ थीं वो गुजर गया। अपनी बारी आते ही वो तेजीसे ताबूतके पास पहुंचा और बड़ी जिज्ञासासे उचककर अन्दर झाँकने लगा। पर ये क्या? अन्दर तो एक बड़ा सा आइना रखा हुआ था।
यह देख वह क्रोधित हो उठा।  तभी उसे आईने के बगलमें एक सन्देश लिखा दिखा-
"इस दुनिया में केवल एक ही व्यक्ति है जो आपकी प्रगतिको रोक सकता है और वो आप खुद हैं। इस पूरे संसारमें आप वो अकेले व्यक्ति हैं जो आपकी ज़िन्दगीमें क्रांति ला सकता है।
आपकी ज़िन्दगी तब नहीं बदलती जब आपका बॉस बदलता है, जब आपके दोस्त बदलते हैं, जब आपके पार्टनर बदलते हैं, या जब आपकी कंपनी बदलती है। ज़िन्दगी तब बदलती है जब आप बदलते हैं, जब आप अपनी वैचारिक मर्यादाएँ तोड़ते हैं, जब आप इस बातको समझ लेते हैं कि अपनी ज़िंदगी के लिए सिर्फ और सिर्फ आप जिम्मेदार हैं।
सबसे अच्छा रिश्ता जो आप बना सकते हैं वो खुदसे बनाया रिश्ता है। खुदको देखिये, समझिये। कठिनाइयों से घबराइए नहीं, उन्हें पीछे छोडिये। विजेता बनिए, खुदका विकास करिए और अपनी उस वास्तविकता का निर्माण करिये जिसका आप करना चाहते हैं!
दुनिया एक आईने की तरह है।
वो इंसानको उसके सशक्त विचारोंका प्रतिबिम्ब प्रदान करती है। ताबूतमें पड़ा आइना दर असल आपको ये बताता है की जहाँ आप अपने विचारोंकी शक्तिसे अपनी दुनिया बदल सकते हैं, वहाँ आप जीवित हो कर भी एक मृतके समान जी रहे हैं।
इसी वक़्त दफना दीजिये उस पुराने ’मैं’ को और एक नए ’मैं’ का सृजन की जिये!!!"

आपको ये कहानी कैसी लगी?  मुझे ये कहानी एक ईमेलसे मिली, अच्छी लगी, इसलिये यहाँ रखी।

Sunday 30 March 2014

संस्कृत सुभाषितोंका परिचय - १

नववर्षका संकल्प ... संस्कृत सुभाषितोंका परिचय

आजका सुभाषित

५२. माता यदि विषम् दद्यात् विक्रिणीते पिता सुतम् ।
राजा हरति सर्वस्वम् तत्र का परिवेदना ।।
 अगर माताही उसके बच्चेको जहर दे, पिताही बेटेको बेच दे और राजाही प्रजाका सर्वस्व लूट ले तो इसकी शिकायत कहाँ और कैसे करें? (अगर रक्षकही भक्षक न जाये तो क्या करे? बडीही मुश्किल होगी।)
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५१, धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ।
तस्मात् धर्मो न हन्तव्यः मा नो धर्मः हतोsवधीत् ।।
 अगर कोई धर्मका नाश करेगा तो धर्म उसका नाश करता है और जो धर्मका रक्षण करता है उसका रक्षण धर्म करता है। हमे धर्मका नाश नही करना चाहिये ताकि वह अपना नाश नही करेगा। (सुभाषितोंकी रचनाके  कालमे  अलग अलग धर्म नही होते थे, धर्म इस शब्दका अर्थ नीतीनियम होता था)
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५०. न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धाः । न ते वृद्धाः ये न वदन्ति धर्मम् ।। 
न असौ धर्मो यत्र न सत्यमस्ति । न तत्सत्यम् यच्छलेनाभ्युपेतम् ।।
 जहाँ वृद्ध जन न हो वह सभा नही, जो धर्म - नीतीकी बातें न करते हो वे वृद्ध नही, जिसमें सत्य न हो वह धर्म नही और जो कपटसे भरा हो वह सत्य नही। निष्कपट सत्य ही वास्तविक धर्म है जो वृद्ध जनोंके मुखसे
निःसृत होता है।
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४९. द्राक्षाम्लानमुखी जाता शर्कराचाश्मताम् गता ।
सुभाषितरसस्याग्रे सुधा भीता दिवम् गता ।।
 सुभाषितोंका माधुर्य देख शराब (द्राक्षा) उदास (म्लान) हो गयी, शक्कर पत्थरके चूर्णके समान हो गयी और अमृत डरके मारे स्वर्गमे चली गयी। (सुभाषितोंका रस शराब, शक्कर और अमृतसेभी अधिक मधुर होता है।)
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४८. संपूर्णकुंभो न करोति शब्दम् । अर्धो घटो घोषमुपै नि नूनम् ।।
विद्वान कुलीनो न करोति गर्वम् । गुणैर्विहीना बहु जल्पयन्ति।।
 पूरा भरा हुआ घडा (कुंभ) आवाज नही करता, आधा भरा घडा आवाज करता है। विद्वान तथा कुलीन मनुष्य घमंड नही करता, गुणहीन मनुष्यही व्यर्थ बकबक करता रहता है। 
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४७.  यः पठति, लिखति, पश्यति, परिपृच्छति, पंडितानृपाश्रयति ।
तस्य दिवाकरकिरणैर्नलिनीदलमिवविकास्यते बुद्धिः ।।
 जो (मनुष्य) वाचन, लेखन, निरीक्षण करता है, प्रश्न पूछता है और पंडितोंकी सेवा करता है उसकी बुद्धी सूर्यकिरणोंसे विकसित होनेवाले कमलकी तरह विकसित होती है।
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४६. आपत्काले तु संप्राप्ते यन्मित्रं मित्रमेव तत् ।
वृध्दिकाले तु संप्राप्ते दुर्जनोsपि सुहृद् भवेत् ।।
 संकटकालमे साथ देनेवाला मित्रही सच्चा मित्र होता है, वैभवकाल आनेपर दुर्जनभी मित्र बन जाते हैं।
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 ४५. सुखार्थी त्यजते विद्याम् विद्यार्थी त्यजते सुखम् ।
सुखार्थिनः कुतो विद्या विद्यार्थिनः कुतो सुखम् ।। 
 सुखके पीछे दौडनेवाला विद्याका त्याग करता है और विद्या प्राप्तिका इच्छुक सुखका त्याग करता है। सुखार्थीको विद्या कहाँसे मिलेगी और विद्यार्थीको सुख कहाँसे मिलेगा?
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 ४४. ज्ञानमंत्रसदाचारैः गौरवं भजते गुरुः ।
तस्माच्छिष्यः क्षमी भूत्वा गुरुवाक्यं न लंघयेत ।।
 ज्ञान, विचार, सदाचार इनके कारण गुरूका गौरव होता है। शिष्यको चाहिये कि वह शांत वृत्ती धारण किये ऐसे सद्रुरूकी आज्ञाका उल्लंघन न करे।. (इसमे उसकी भलाई है।)
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 ४३. क्षमा शत्रौ च मित्रे च यतीनामेव भूषणम् ।
अपराधिषु सत्वेषु नृपाणाम् सैव दूषणम् ।।
 शत्रू और मित्र दोनोंकोही क्षमा करना साधूसंतोंके लिये भूषणास्पद होगा, मगर अपराधियोंको क्षमा करना राजाओंके (शासकोके) लिये दूषणास्पद होगा। उन्होंने अपराधियोंको सजा देनीही चाहिये।
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४२. न हि कश्चिद्विजानाति किं कस्य श्वो भवेदिति ।
अतःश्वः करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धीमान् ।।
 कल किसका क्या होनेवाला है यह कोई नही जानता। इसलिये बुद्धीमानको चाहिये कि कल किये जानेवाले काम आजही कर डाले।
   एक कहावत है, कल करेसो आज कर, आज करे सो अब, पलमें परलय होयेगो बहुरी करोगे कब?
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४१. जानन्ति पशवो गंधात् वेदाज्जानन्ति पण्डिताः ।
चाराज्जानन्ति राजानः चक्षुभ्यामितरेजनाः ।।
गंधसे पशुओंको (उस वस्तूका) ज्ञान होता है, पंडितोंको वेदोंसे (उस विषयका) ज्ञान प्राप्त होता है, राजाओंको गुप्तचरोंसे ज्ञान प्राप्त होता है और सामान्य लोगोंको अपनी आँखोंसे ज्ञान प्राप्त होता है ।
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४०. सुलभाः पुरुषाः राजन् सततं प्रियवादिनाः।
अप्रियस्यच पथ्यस्यवक्ताश्रोता च दुर्लभः ।।
हे राजन्, हमेशा प्रिय बोलनेवाले लोग सुलभ होते हैं, मगर हितकर परंतु अप्रिय बोलनेवाला और वह सुननेवाला ये दोनोंही दुर्लभ होते हैं।
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 ३९. उद्यमः साहसं धैर्यं बलं बुद्धिः पराक्रमः ।
षडेते यत्र वर्तंते तत्र देवः सहायकृत् ।।
 उद्यम (प्रयत्न), साहस, धैर्य, बल, बुद्धी और पराक्रम ये छह बातें जिसके पास होती है, भगवान इसीकी सहायता करते है।
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३८. अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः ।
चत्वारि यस्य वर्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम् ।।
 जो अभिवादनशील (नम्र स्वभाववाला) है और जो वृद्धोंकी सेवा करता है उसकी आयु, विद्या, यश तथा बल इनमें वृद्धी होती है।
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३७. धनिकः श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पंचमः
पंच यत्र न विद्यन्ते न तत्र दिवसम् वसेत् ।।
 धनवान, वेदवेत्ता, राजा (शासक), नदी और वैद्य ये पाँच जहाँ नहो वहाँ एक दिनभी नही रहना चाहिये । (इन पाँचोंका होना बहुत आवश्यक होता है।)
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३६. लक्ष्यमेकम् तु निश्चित्य तत्रैकाग्रम् मनः कुरू ।
संयमेन कृतम् कार्यम् शीघ्र सिद्धिम् प्रयच्छति ।। 
 अपने सामने एक ध्येय (लक्ष्य) निश्चित करो और उसीपर मनको एकाग्र करो। संयमपूर्वक कार्य करनेसे शीघ्रही सिद्धी प्राप्त होगी।

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३५. तावद्भयस्य भेतव्यम् यावद्भयमनागतम् ।
आगतं तु भयम् वीक्ष्य पिरतिकुर्यात् यथोचितम् ।।
संकट किंवा भय जबतक प्रत्यक्ष उपस्थित ना हो तभीतकही उससे डरे। परंतु जब वह आकर उपस्थित हो, तब निडर होकर उसका यथोचित प्रतिकार करना चाहिये।
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 ३४. गुणिनाम् निर्गुणाम् च दृष्यते महदंतरम् ।
हारः कंठगतः स्त्रीणाम् नूपुराणिच पादयोः।।
 गुणवंत और गुणहीन इनमे बहुत अंतर दिखायी देता है। गुणी सूत्रसे युक्त हार नारीके गलेमें (उच्च स्थानपर) पहनाया जाता है, मगर पायल उसके पैरोंमे।
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३३. मृगाः मृगैः संगमनुव्रजन्ति गोभिश्च गावः तुरगास्तुरंगैः ।
मूर्खाश्च मूर्खैः सुधियः सुधीभिः समानशीलव्यसनेषु सख्यम् ।।
 हिरन हिरनोंके (झुंडके) साथ जाते हैं, गायें गायोंके साथ, घोडे घोडोंके साथ, मूर्ख मूर्खोंके साथ और बुद्धिमान बुद्धिमानोंके साथ जाते हैं। समान स्वभाववाले लोग व्यसन, संकटके समय एकदूसरेके साथ मित्रता करते हैं।

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३२. मांसम् मृगाणाम् दशनौ गजानाम् , मृगद्विषाम् चर्म फलम् द्रुमाणाम् ।
स्त्रीणाम् स्वरूपम् च नृणाम् हिरण्यम् , एते गुणाः वैरकरा भवन्ति ।।
हिरनोंका मांस, हाथीके दाँत, व्याघ्रका चमडा, पेडोंके फळ, स्त्रियोंके रूप-लावण्य, मनुष्यका सोना (धन) ये बातें बैर उत्पन्न करनेवाली (उनके लिये घातक) होती हैं। .
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३१. यथाखरश्चंदनभारवाही, भारस्य वेत्ता न तु चन्दनस्य ।
तथाच विप्राः श्रुतिशास्त्रयुक्ताः मद्भक्तिहीनाः खरवद्वहन्ति ।।
जिस प्रकार चन्दनकी लकडीका भार ढोनेवाले गधेको सिर्फ बोझ का ज्ञान होता है, चंदनका नही, उसी तरह वेदशास्त्र पारंगत ब्राह्मण अगर ईश्वरभक्तीसे युक्त न हो तो वह भी उस गधेकी तरह केवल ज्ञानका बोझ ढोता रहता है, उसे यथार्थ ज्ञान नही होता।
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 ३०. यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम् ।
लोचनाभ्याम् विहीनस्य दर्पणः किम् करिष्यति ।।
 जिसके पास स्वयंकी प्रज्ञा (ग्रहणशक्ती) न हो उसे शास्त्र क्या करे? जैसेकि अंधेको आइना दिखानेसे क्या फायदा?
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२९. बंधनानि खलु सन्ति बहूनि प्रेमरज्जु दृढबंधनमुच्यते ।
दारुभेदनिपुणोपि शडंघ्रिः निष्क्रियो भवतिपंकजकोषे ।। 
 संसारमे बहुतसे बंधन है, पर प्रेमकी डोरका बंधन सबसे मजबूत कहा जाता है।. (कठीण) लकडीको कुरेदनेमे निपुण भँवरा (नाजुक) कमलके कोषका भेद कर बाहर निकलनेमे (असमर्थ) निष्क्रिय होता है ।
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२८.  देवे तीर्थे द्विजे मन्त्रे दैवज्ञे भेषजे गुरौ ।
यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी ।।
देव, तीर्थ, द्विज, मंत्र, वैद्य या उसकी औषधी तथा गुरू इनके बारेमे अपनी भावना जैसी होगी वैसी ही सिद्धी (फल) प्राप्त होगी। उनके बारेमे मनमे विश्वास न हो तो उनसे कुछ फायदा नही मिलेगा।
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२७. मनो मधुकरो मेघो मानिनी मदनो मरुत् ।
मा मदो मर्कटो मत्स्यो मकाराः दशचंचलाः ।।
 मन, मधुकर (भँवरा), मेघ (बादल), मानिनी स्त्री, मदन, मरुत् (वायु), मा (लक्ष्मी), मद, मर्कट और मत्स्य (मछली) ये म इस अक्षरसे सुरू होनेवाली दस बाते चंचल होती है। एत जगहपर स्थिर नही रहती।
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२६. नवे वयसु यो शांतः स शांत इति मे मतिः।
धातुषु क्षीणमाणेषु शमः कस्य न जायते ।।
 जो आदमी यौवनमें शांत रहता है वही शांत पुरुष है ऐसे मै मानता हूँ। वृद्धापकालमें कौन शांत नही होता?
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 २५. प्रदोषे दीपकश्चंद्रः प्रभाते दीपको रविः ।
त्रैलोक्ये दीपको धर्मः सुपुत्रः कुलदीपकः ।।
 रातका दीपक (चमकनेवाला) चंद्रमा है, प्रभातकालका दीपक (प्रकाश देनेवाला) सूरज है, धर्म तीनो लोकोंका दीपक है और सुपुत्र कुलका (वंशका) दीपक होता है। 
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२४. त्यागः एको गुणः श्लाघ्यःकिमन्यैगुणराशिभिः ।
त्यागात् जगति पूज्यन्ते पशुः पाषाण पादपाः ।।
त्याग ही एक सर्वश्रेष्ठ गुण है। उसके बिना अन्य गुणोंके ढेर भी व्यर्थ है। त्याग इस एकही गुणके कारण इस संसारमें पशु, पाषाण आणि वृक्ष पूजे जाते हैं।.
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२३.  नान्नोदकसमम् दानम् न तिथिर्द्वादशीसमा ।
न गायत्र्यापरो मन्त्रः न मातुःपरदैवतम् ।।
अन्न और पानीका दान करने जैसा दुसरा कोई दान नही, द्वादशीजैसी कोई और तिथि नही, गायत्री मंत्रके समान मंत्र नही और माँके समान श्रेष्ठ दुसरा कोई दैवत नही।
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२२. अश्वम् नैव गजम् नैव, व्याघ्रम् नैव च नेव च ।
अजापुत्रो बलिम् दध्यात् देवो दुर्बलघातकः ।।
 किसी भी देवता के सामने घोडे या हाथीकी बलि नही दी जाती, शेरकी तो कभी नही। बेचारी बकरीके पुत्रकी यानी बकरेकी बलि दी जाती है। इस तरह भगवानभी दुर्बलोंकेही घातक होते है।
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 २१. एकेनापि सुपुत्रेण सिंही स्वपिति निर्भया ।
सहैन दशभिः पुत्रै भारं वहति रासभी  ।।
सिंहनी अपने एक मात्र सुपुत्रके बलपर निर्भय होकर चैनकी नींद सोती है, जबकी गधीके दस पुत्र होनेके बावजूद उन्हीके साथ वह भी बोझ ढोती रहती है।
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२०. युध्यन्ते पक्षिपशवः पठन्ति शुकसारिका।
दातुम् शक्नोति यो वित्तम् स शूरः स च पंडितः।।
पशुपक्षीभी युद्ध करते हैं, तोते और सारिकाभी रटकर ज्ञानकी बाते बताते हैं। जो आदमी धनका दान करता है, वही वीर और पंडित होता है।
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१९. चिंता चिता समानास्ति बिंदूमात्र विशेषता ।
सजीवम्  दहते चिंता निर्जीवम् दहते चिता ।।
चिंता और चिता दोनों एकसमान है। उनमे सिर्फ एक बिंदूका (अनुस्वारका) अंतर है। चिंता जीवितको जलाती है और चिता निर्जीवका दहन करती है।.
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१८. अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम् ।
अधनस्य कुतो मित्रं अमित्रस्य कुतो सुखम् ।।
आलसी आदमीको कहाँसे विद्या प्राप्त होगी? विद्या ना हो तो धन कहाँसे मिलेगा? धन न हो तो मित्र कैसे मिलेगा और मित्र न हो तो सुख कैसे मिलेगा? जिंदगीमें सुख पाना हो तो आलस का त्याग करना जरूरी है।
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 १७. गौरवम् प्राप्यते दानात् न तु वित्तस्य संचयात् ।
स्थितिरुच्चैः पयोदानाम् पयोधीनामधस्तथा ।।
दान करनेसे गौरव प्राप्त होता है, संचय करनेसे नही। पानी बरसानेवाले (प्रदान करनेवाले) बादल आकाशमे उच्च स्थानपर रहते है और उसका संचय करनेवाले समुंदर की जगह नीचे रहती है।
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१६. वृथा वृष्टिः समुद्रेषु वृथा तृप्तस्य भोजनम् ।
वृथा दानम् समर्थस्य वृथा दीपो दिवाsपिच ।।
सागरोंमे बारिश व्यर्थ है। भरपेट खाना खाकर तृप्त हुवे आदमीको भोजन देनेका कोई मतलब नही होता। जो स्वयं समर्थ है उसी दान देना व्यर्थ है और दिनके उजालेमे दिया जलाना व्यर्थ है। जिसे जिस चीजकी बिलकुलही जरूरत नही है उसे वह चीज देना उस चीजका अपव्यय है।
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१५. शैले शैले न माणिक्यम् मौक्तिकम् न गजे गजे।
साधवो न हि सर्वत्र चंदनम् न वने वने।।
हर पर्वतपर माणिक्य रत्न नही मिलता। हर हाथीके मस्तकमे मोती नही होता। हर जंगलमे चंदनके पेड नही उगते। उसी तरह हर स्थानपर (हर कोई) सज्जन नही होता। अच्छी चीजें दुर्लभही होती है।
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 १४. हस्तस्य भूषणम् दानम् सत्यम् कंठस्य भूषणम् ।
श्रोत्रस्य भूषणम् शास्त्रम् भूषणैः किम् प्रयोजनम् ।।
दान हातकी शोभा बढाता है, दान हाथका आभूषण है। सत्य बोलना गलेका आभूषण है। शास्त्र श्रवण करना कान का आभूषण है। फिर अन्य घहनोंकी जरूरत ही क्या है?
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१३. काकः कृष्णः पिकः कृष्णः को भेद पिककाकयोः।
वसंतसमये प्राप्ते काकः काकः पिकः पिकः ।।
कौआ काला होता है और कोयल भी काली ही होती है। फिर इन दोनोंमे क्या फर्क है? पर वसंत ऋतुके आतेही समझमे आता है कि इनमें कौन कौआ है और कौन कोयल। कौआ का का करेगा और कोयल कुहू कुहू।

१२. हंसो शुक्लः बकः शुक्लः को भेद बकहंसयोः।
नीरक्षीरविवेके तु हंसो हंसः बको बकः ।।
हंस भी सफेद होता है और बगुला भी सफेद होता है। फिर इन दोनोंमे क्या फर्क है? पानी और दूध का विवेक करते समय ये समझमे आता है कि कौन हंस है और कौन बगुला। हंस पक्षी पानी और दूध का विवेक करता
है मगर बगुला नही।
इन दोनों सुभाषितोंसे यह सीख मिलती है कि बाह्य रूप एक जैसा हो, मगर गुण भिन्न हो सकते हैं। किसीका सिर्फ रूप देखनेकी बजाय उसके गुणोंको देखना चाहिये।
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११. सर्वे यत्र विनेतारः सर्वे पंडितमानिनः।
सर्वे महत्वमिच्छंति कुलम् तदवसीदति।।
जिस कुलमे सभी नेता होना चाहते हैं, सभी स्वयंको पंडित मानते हैं, सभी महत्व पानेके इच्छुक होते हैं, वह कुल नष्ट हो जाता है। (क्यों कि उस कुलके लोग  हमेशा एकदूसरेसे झगडते रहते हैं।)
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१०. चलं चित्तं चलं वित्तं चले जीवितयौवने ।
चलाचलमिदंसर्वं कीर्तिः यस्य स जीवति ।।
मन और धन चंचल होते हैं, जीवन तथा यौवनभी अस्थिर होते हैं। चिरकालतक स्थिर रहती है मनुष्यकी कीर्ती। मनुष्य कीर्तीरूपसे जीवित रहता है (अमर होता है)।
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९. यस्मिन् देशे न सन्मानो न प्रीतिर्नच बांधवाः ।
न च विद्यागमः कश्चित् न तत्र दिवसम् वसेत् ।।
जिस देशमे (स्थानपर) हमारा सम्मान नही होता, किसीसे प्रेम नही मिलता, कोई अपने रिश्तेदार नही होते, कोई विद्या प्राप्त होनेकी संभावना नही होती, वहाँ एक दिन भी नही रहना चाहिये। .... अब ये सोच कुछ बदल गयी है, मगर परदेसमें सम्मान, प्रेम, बंधुभाव या सीख इसमेंसे कुछ भी मिलनेपर बडी तकलीफ होती है।   
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८. पुस्तकस्था तु या विद्या परहस्तगतम् धनम्।
कार्यकाले समुत्पन्ने न सा विद्या न तद् धनम्।।
पुस्तकोंमे लिखी विद्या और दूसरेके कब्जेमे रखा धन जब उनकी सख्त जरूरत हो तब काम नही आते। विद्याको सीख लें और धनको अपने पासही सुरक्षित रखें तो वह बेहतर होगा।
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७. अतिपरिचयादवज्ञा संततगमनादनादरोभवती।
मलये भिल्लपुरंध्री चंदनतरुकाष्ठमिँधनंकुरुते।।
अति परिचय होनेसे अवज्ञा होती है। आपकी बात अनसुनी की जा सकती है। किसीके पास बार बार जानेसे अपमान हो सकता है। मलयपर्वतपर रहनेवाली भीलनी वहाँ चारों ओर फैले हुवे चंदनवृक्षकी लकडी का उपयोग चूल्हा जलानेके लिये करती है। यह बहुत पुरानी बात है। उन दिनों वीरप्पनजैसे चंदनके तस्कर नही होते थे।
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६. यौवनं धनसंपत्तिः प्रभुत्वं अविवेकता ।
एकैकमपि विनाशाय किमु यत्र चतुष्टयम् ।।
 यौवन (जवानी), धनसंपत्ति, प्रभुत्व (सत्ता) और अविवेक (मूर्खता) इनमेसे एकेक बात भी आदमीको तबाह कर सकती है। अगर ये चारों बाते किसीमे इकठ्टा हो जाये तो फिर क्या कहने? इनसे जरासा सम्हलकरही रहना।

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५. विद्या मित्रं प्रवासेषु भार्या मित्रं गृहेषु च ।
व्याधितस्यौषधं मित्रं धर्मो मित्रं मृतस्य च ।।
यात्राके समय विद्या मनुष्यकी मित्र होती है, वह उसके काम आती है। घरमे रहते समय पत्नी उसकी मित्र होती है, वह हर तरहसे उसकी सहायता करती है। बीमारके लिये औषध मित्र है, उसे ठीक करता है और मृतकके लिये धर्म उसका मित्र होता है।
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४. सर्वेषामेवशौचानाम् अर्थशौचं परं स्मृतम् ।
योsर्थे शुचिः स हि शुचिः नमृद्वारिशुचिःशुचिः ।।
धनविषयक पवित्रता सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। जो आदमी रुपयेपैसेके मामलेमे सच्चा हो, हेराफेरी न करे, वह ही यथार्थमे शुद्ध है। केवल मिट्टी और पानीकी शुद्धी (बाह्य शुद्धी) पवित्र नही होती। 
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३. अमंत्रं अक्षरं नास्ति नास्ति मूलमनौषधम्।
अयोग्यः पुरुषो नास्ति योजकस्तत्रदुर्लभः।।
ऐसा कोई अक्षर नही जो मंत्र न हो, ऐसी कोई वनस्पती नही जिसमे औषधी गुण न हो,  कोई पुरुष अयोग्य नही होता, इन सभीका योग्य उपयोग कर लेनेवाला योजक ही दुर्लभ होता है। हर चीज या आदमी उपयुक्त होता है, उसका सही उपयोग कर लेना आसान नही होता। कुछ योजक वह काम करते हैं।
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आज इस उपक्रमकी शुरुवात की है। इसमे एक एक करके सुभाषित जुडते जायेंगे।

१. भाषासु मुख्या मधुरा दिव्या गीर्वाण भारती ।
तस्माद्हि काव्यं मधुरम् तस्मदपि सुभाषितम्।।
सभी भाषाओंमे संस्कृत भाषा प्रमुख, मधुर और दिव्य है। उसमे काव्य अधिक मधुर आहे और सुभाषित उससेभी ज्यादा मधुर है।

२.पृथिव्याम् त्रीणि रत्नानि जलमन्नम् सुभाषितम् ।
मूढैः पाषाणखंडेषु रत्नसंज्ञा विधीयते।।
इस धरतीपर पानी, अन्न और सुभाषित यही तीन (असली) रत्न है। परंतु मूर्ख लोग पत्थरके टुकडोंकोही रत्न कहते हैं।

Saturday 29 March 2014

ये दोस्ती

यह कविता मुझे ईमेलसे मिली है। मै इसके कवीको नही जानता, मगर वह जो भी हो उसे सादर प्रणाम।

चलो कुछ पुराने दोस्तों के
दरवाज़े खटखटाते हैं।
देखते हैं उनके पँख थक चुके हैं,
या अभी भी फड़फड़ाते हैं।

वो बेतकल्लुफ़ होकर
किचन में कॉफ़ी मग लिए बतियाते हैं।
या ड्राइंग रूम में बैठा कर
टेबल पर नाश्ता सजाते हैं।

हँसते हैं खिलखिलाकर
या होंठ बंद कर मुस्कुराते हैं।
वो बता देतें हैं सारी आपबीती
या सिर्फ सक्सेस स्टोरी सुनाते हैं।

हमारा चेहरा देख
वो अपनेपन से मुस्कुराते हैं।
या घड़ी की और देखकर
हमें जाने का वक़्त बताते हैं।

चलो कुछ पुराने दोस्तों के
दरवाज़े खटखटाते हैं।
देखते हैं उनके पँख थक चुके हैं,
या अभी भी फड़फड़ाते हैं।

सभी पुराने दोस्तोंको समर्पित ।
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जिंदगी दोस्तोंमे मिला करती है .... और ये दोस्त भी बडे अजीब होते हैं। 
देनेपे आये तो जान भी दे दें  ....  और लेनेपे आये तो हँसीतक छीन लें।
कहनेपे आये तो दिलके तमाम राजतक कह दें ...
और छुपानेपे आये तो ये तक न बताये कि खफा क्यूँ हैं।
नाराज होनेपे आये तो साँसतक ना लेने देते ...
और मनानेपे आये तो अपनी साँसोंको वार दें।
यारों किसीने सही कहा है, दोस्त जिंदगीमें नही मिला करते, बल्कि जिंदगी दोस्तोंमे मिला करती है।

मेरे सभी दोस्तोंको समर्पित।
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कुछ जाने माने फिल्मी गीत

ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे, तोड़ेंगे दम मगर तेरा साथ ना छोड़ेंगे।।
मेरी जीत तेरी जीत, तेरी हार मेरी हार, सुन ऐ मेरे यार।
तेरा गम मेरा गम, मेरी जान तेरी जान, ऐसा अपना प्यार।
जान पे भी खेलेंगे, तेरे लिये ले लेंगे, सब से दुश्मनी ।।
लोगों को आते हैं, दो नज़र हम मगर, देखो दो नही।
हो जुदा, या खफा, ऐ खुदा, हैं दुवां, ऐसा हो नही।
खाना पीना साथ हैं, मरना जीना साथ हैं, सारी जिंदगी।।

.... शोले
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चाहूँगा मैं तुझे साँझ सवेरे,
फिर भी कभी अब नाम को तेरे,
आवाज़ मैं न दूँगा, आवाज़ मैं न दूँगा।।

देख मुझे सब है पता,
सुनता है तू मन की सदा ।
मितवा ... मेरे यार तुझको बार बार
आवाज़ मैं न दूँगा।।

दर्द भी तू चैन भी तू,
दरस भी तू नैन भी तू,
मितवा ... मेरे यार तुझको बार बार
आवाज़ मैं न दूँगा।।
..... दोस्ती
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ग़र ख़ुदा मुझसे कहे कुछ माँग ऐ बंदे मेरे
मैं ये माँगूँ  महफ़िलों के दौर यूँ चलते रहें
हमप्याला हो, हमनवाला हो, हमसफ़र हमराज़ हों
ता\-क़यामत जो चिराग़ों की तरह जलते रहें

यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी
प्यार हो बंदों से ये सब से बड़ी है बंदगी
यारी है! यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी

साज़\-ए\-दिल छेड़ो जहाँ में प्यार की गूँजे सदा
जिन दिलों में प्यार है उनपे बहारें हों फ़िदा
प्यार लेके नूर आया प्यार लेके सादगी
यारी है! यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी

जान भी जाए अगर यारी में यारों ग़म नहीं
अपने होते यार हो ग़मगीन मतलब हम नहीं
हम जहाँ हैं उस जगह झूमेगी नाचेगी ख़ुशी
यारी है! यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी

गुल\-ए\-गुलज़ार क्यों बेज़ार नज़र आता है
चश्म\-ए\-बद का शिकार यार नज़र आता है
छुपा न हमसे, ज़रा हाल\-ए\-दिल सुना दे तू
तेरी हँसी की क़ीमत क्या है, ये बता दे तू

कहे तो आसमाँ से चाँद\-तारे ले आऊँ
हसीं जवान और दिलकश नज़ारे ले आऊँ
तेरा ममनून हूँ तूने निभाया याराना
तेरी हँसी है आज सबसे बड़ा नज़राना
यार के हँसते ही महफ़िल में जवानी आ गई, आ गई
यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी 
... जंजीर




Sunday 16 March 2014

होली गीत

स्व.व्ही.शांतारामजीका नवरंग सिनेमा प्रदर्शित हुवा था तब मै स्कूलमे था। उस जमानेसे लेकर आजतक बॉलीवुडकी फिल्मोंमे होलीके गाने आते रहे है। उनमेंसे कुछ चुने हुवे गीत इस लिंकपर देखे जा सकते हैं। 
होली आयी रे कन्हाई - शमशाद बेगम - Mother India
http://www.youtube.com/watch?v=gdz78BW7pKU
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तन रंग लो जी आज मन रंग लो ... मोहंमद रफी .. कोहिनूर
http://www.youtube.com/watch?v=SaJOeQEVG28
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http://www.india.com/top-n/rang-barse-to-balam-pichkari-bollywoods-top-11-holi-songs-will-add-colours-to-the-occasion-24019/
रंग बरसे भीगी चुनरिया रे रंग बरसे - सिलसिला
होलीके दिन खिल जाते हैं -  शोले
आज ना छोडेंगे बस हमजोली - कटी पतंग
अरे जा रे हट नटखट - नवरंग
होली खेले रघुवीरा अवधमे - बागबान
सोणि सोणी अँखियोंवाली - मोहब्बतें
कोई भीगे है रंगसे -
डू मी ए फेवर लेट्स प्ले होली रंगोमेहै प्यारके गोले - वक्त द रेस अगेन्स्ट टाइम
छानके मोहल्ला सारा देख लिया - अॅक्शन रिप्ले
इतना मजा क्यूँ आ रहा है .. बसम पिचकारी - ये जवानी है दीवानी
लहू मुँह लग गया - गोलियोंकी रासलीला रामलीला

मोरे कान्‍हा जो आए पलट के ... सरदारी बेगम
http://www.youtube.com/watch?v=fl8H3t1z70A
मोरे कान्‍हा जो आए पलट के
अब होरी मैं खेलूंगी डट के ।।

उनके पीछे मैं चुपके से जाके
ये गुलाल अपने तन से लगाके
रंग दूंगी उन्‍हें भी लिपटके ।।  मोरे कान्‍हा ।।

की जो उन्‍होंने अगर जोरा-जोरी
छीनी पिचकारी बैंया मरोरी
गारी मैंने रखी हैं रटके ।।   मोरे कान्‍हा ।।
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होली आयी रे ....  collection
http://www.youtube.com/watch?v=rZsLXlMWw4c
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होरी खेलत नन्दलाल बिरजमे - सोहंमद रफी - गोदान
http://www.youtube.com/watch?v=qq-I4RJnLGE

होरी खेलत नन्दलाल
बिरज में होरी खेलत नन्दलाल
ग्वाल बाल संग रास रचाए
नटखट नन्द-गोपाल
बिरज में…

बाजत ढोलक, झांज, मंजीरा
गावत सब मिल आज कबीरा
नाचत दे-दे ताल
बिरज में होरी खेलत नन्दलाल…

भर भर मारे रंग पिचकारी
रंग गए बृज के नर नारी
उड़त अबीर गुलाल
बिरज में होरी खेलत नन्दलाल…

ऐसी होरी खेली कन्हाई
जमुना तट पर धूम मचाई
रास रचें नन्दलाल
बिरज में होरी खेलत नन्दलाल…

Movie/Album: गोदान (1963)
Music By: प.रविशंकर
Lyrics By: अनजान
Performed By: मो.रफ़ी



मियाँबीवीकी नोकझोक

कुछ और नये नुस्खे

२१ सितंबर २०१६
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यहाँ दिये हुवे बहुतसे किस्से शायद पुरुषोंने लिखे होंगे, मगर एक पति ऐसा भी है जो पत्नीका आदर करता है। देखिये, उसने क्या अर्ज किया है।

कितनी खूबसूरती से लिखा है एक पति ने*👌🏻😊
*शाँति और सूनापन.*
• मैं सोता हूँ,घर में शाँति छा जाती है...
*वो सोती है,घर में सूनापन छा जाता है ।।*
• मैं घर लौटता हूँ,घर में शाँति हो जाती है...
*वो घर लौटती है,घर में रौनक हो जाती है ।।*
• मैं सोकर उठता हूँ, घर में फरमाईसें गूँजती हैं...
*वो सोकर उठती है,घर में पूजा की घंटियाँ गूँजती हैं ।।*
• मेरा घर लौटना ,उसका आत्मविश्वास बढ़ाता है...
*उसका घर लौटना, घर में लक्ष्मी व अन्नपूर्णा का "वास" होता है।।*
• पत्नि चुटकुलों में उपहास की पात्र नहीं है...
*वो हमसफर , रक्षक व परिवार की शक्ति है।।*

ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः

०८ अगस्त २०१६
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२७ मई २०१६
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20 दिसंबर २०१५
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आखिर पत्नी क्या है..?

फौजी: सारे दुश्मन हमसे डरते हैं और हम बीवी से !

मोची: मैं जूतों की मरम्मत करता हूं और बीवी मेरी !

टीचर: मैं कॉलेज में लैक्चर देता हूं और घर में बीवी से सुनता हूं !

ऑफिसर: मैं ऑफिस में बॉस हूं और घर में बीवी का नौकर !

जज: मैं कोर्ट में फैसला सुनाता हूं और घर में इंसाफ के लिए तरसता हूं !

दुकानदार :- मैं दुनिया को बनाता हूँ फिर घर में पत्नी मुझे बनाती है !

डॉक्टर : मैं दुनिया को ठीक करता हूँ और घर में बीवी मुझे ठीक करती है !

फेसबुकिया : मैं दुनिया को पकाता हूँ और घर में बीवी मुझे पकाती है !

अकाउंटेंट : मैं दुनिया का हिसाब रखता हूँ और बीवी मेरा हिसाब बराबर करती है !

फैसला आपके हाथ में है.. कुंवारे रहो खुश रहो। जो शादी कर चुके हैं वो सब्र करें ।
 ------------------------------------

शादी के बाद पत्नी कैसे बदलती है , जरा गौर कीजिए।

पहले साल : मैंने कहा जी खाना खा लीजिए , आपने काफी देर से कुछ खाया नहीं ।

दूसरे साल : जी खाना तैयार है , लगा दूं ?

तीसरे साल : खाना बन चुका है , जब खाना हो तब बता देना ।

चौथे साल : खाना बनाकर रख दिया है , मैं बाजार जा रही हूं , खुद ही निकाल कर खा लेना।

पांचवे साल : मैं कहती हूं आज मुझ से खाना नहीं बनेगा , होटल से ले आओ ।

छठे साल : जब देखो खाना , खाना और खाना , अभी सुबह ही तो खाया था ।
------------------------------------ ---------------


शादी के बाद पति कैसे बदलते है , जरा गौर कीजिए।

पहले साल : प्रिये, संभलकर .. उधर गड्ढा है।

दूसरे साल : अरे यार, देख के चल। उधर गड्ढा है।

तीसरे साल : दिखता नहीं उधर गड्ढा है?

चोथे साल : अंधी हैं क्या, गड्ढा नहीं दिखता ?

पांचवे साल : अरे उधर -किधर मरने जा रही है? गड्ढा तो इधर है।
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दि. १९ ऑक्टोबर २०१५
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आखिर पत्नी क्या है..?

फौजी: सारे दुश्मन हमसे डरते हैं और हम बीवी से !

मोची: मैं जूतों की मरम्मत करता हूं और बीवी मेरी !

टीचर: मैं कॉलेज में लैक्चर देता हूं और घर में बीवी से सुनता हूं !

ऑफिसर: मैं ऑफिस में बॉस हूं और घर में बीवी का नौकर !

जज: मैं कोर्ट में फैसला सुनाता हूं और घर में इंसाफ के लिए तरसता हूं !

दुकानदार :- मैं दुनिया को बनाता हूँ फिर घर में पत्नी मुझे बनाती है !

डॉक्टर : मैं दुनिया को ठीक करता हूँ और घर में बीवी मुझे ठीक करती है !

फेसबुकिया : मैं दुनिया को पकाता हूँ और घर में बीवी मुझे पकाती है !

अकाउंटेंट : मैं दुनिया का हिसाब रखता हूँ और बीवी मेरा हिसाब बराबर करती है !

{फैसला आपके हाथ में है.. कुंवारे रहो खुश रहो no wife easy life}
जो शादी कर चुके हैं वो सब्र करें ।
 ------------------------------------

शादी के बाद पत्नी कैसे बदलती है , जरा गौर कीजिए :

पहले साल : मैंने कहा जी खाना खा लीजिए , आपने काफी देर से कुछ खाया नहीं ।

दूसरे साल : जी खाना तैयार है , लगा दूं ?

तीसरे साल : खाना बन चुका है , जब खाना हो तब बता देना ।

चौथे साल : खाना बनाकर रख दिया है , मैं बाजार जा रही हूं , खुद ही निकाल कर खा लेना ।

पांचवे साल : मैं कहती हूं आज मुझ से खाना नहीं बनेगा , होटल से ले आओ ।

छठे साल : जब देखो खाना , खाना और खाना , अभी सुबह ही तो खाया था ।
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शादी के बाद पति कैसे बदलते है , इसपर भी जरा गौर कीजिए

पहले साल : dear संभलकर उधर गड्ढा हैं

दूसरे साल : अरे यार देख के उधर गड्ढा हैं

तीसरे साल : दिखता नहीं उधर गड्ढा हैं

चोथे साल : अंधी हैं क्या गड्ढा नहीं दिखता

पांचवे साल : अरे उधर -किधर मरने जा रही हैं गड्ढा तो इधर हैं ..



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कुछ नये नुस्खेः
 पतिः प्रिये, २५ साल पहले मेरे पास किरायेका एक कमरा था, उसमे टेबल फॅन, ब्लॅक अँड व्हाईट टीव्ही और एक साइकिल थी, मगर २५ सालकी युवा सुंदर बीवी थी। आज मेरे पास बडा आलीशान बंगला, बडी कार, ४ एलईडी टीव्ही, नौकर चाकर वगैरा वगैरा बहुत कुछ है, मगर ५० साल उमरकी प्रौढा बीवी है।
पत्नीः अच्छा, तुम २५ साल उमरकी जवान बीवी ढूँढ लो, उसके बाद तुम किरायेका एक कमरा, उसमे टेबल फॅन, ब्लॅक अँड व्हाईट टीव्ही और एक साइकिलवाले हालतमे फिर जाओगे ये मै देखूँगी।
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पत्नीः क्या एक पत्नी उसके पतिकी सहेली नही हो सकती?
पतीः हो सकती है, होती भी है, मगर वह सहेलीसे ज्यादा उसकी (ममताभरी) माँ होती है।

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सवाल कुछ भी हो, जवाब तुम ही हो।
रास्ता कोई भी हो, मंजिल तुम ही हो।
दुख कितना भी हो, खुषी तुम ही हो।
अरमान कितने भी हो, आरजू तुम ही हो।
गुस्सा जितना भी हो, प्यार तुम ही हो।
ख्वाब कोई भी हो, तकदीर तुम ही हो।
...
यानी ऐसा समझो कि,
फसाद कोई भी हो, सारे फसादकी जड तुम ही हो।
-------------------------------------------------------------

लडाई करते समय किस बीवीने अपने मियाँसे क्या कहा
वैमानिककी पत्नीः ज्यादा उडो मत।
रंगारीकी बीवीः थोबडा रंगा दूँगी।
धोबनः धो डालूँगी।
अभिनेताकी पत्नीः नाटक मत करो।
दाँतोंके डॉक्टरकी पत्नीः दाँत तोड दूँगी।
सीएकी बीवीः हिसाबसे रहो।
मेकॅनिकल इंजिनियरकी पत्नीः सब पार्ट्स ढीले कर दूँगी।
न्यूक्लियर इंजिनियरकी पत्नीः क्रिटिकल मत बनो।
इलेक्ट्रिकल इंजिनियरकी पत्नीः ऐसा जबरदस्त शॉक दूँगी की पूछो मत।
केमिकल इंजिनियरकी पत्नीः रिअॅक्ट करोगे तो बहुत हीट निकलेगी।
आर्किटेक्टकी बीवीः सीधे रहो नही तो फेसकी डिझाइन चेंज कर दूँगी।
मार्केटिंगवालेकी बीवीः ज्यादा बोलोगे तो ओएलएक्सपे बेच दूँगी।


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बीवी, "सुनोजी, डॉक्टरने मुझे महिनाभर आराम करनेके लिये स्विट्जर्लँड या पॅरिस जाने कहा है। हम कहाँ जायें?"
मियाँ, "किसी दूसरे डॉक्टरके पास।"
.....
बीवी बोलती है, "मै बस पाँच मिनटमें तैयार हो रही हूँ।"
और शौहर बोलता है, "मै बस पाँच मिनटमें तुम्हे फोन करूँगा।"
वे दोनों इसके लिये करीब करीब उतनाही वक्त लेते हैं।
....
बीवी, "ऐँजी आप इस वक्त कहाँ हो?"
मियाँ, "बँकमें"
"तो मेरे लिये बीस हजार रुपये लेके आइये। मुझे नये ड्रेस, जूते, पर्स आदि खरीदने है।"
"सॉरी डियर, मैं ब्लडबँकमें हूँ।"
....
एमबीए पास मियाँकी पत्नीने सवाल किया, "क्योंजी ये इन्फ्लेशन क्या होता है?"
पतीने बताया,"देखो पहले तुम ३६-२४-३६ थी, अब ४२-४०-४८ हो। अब तुम्हारे पास सब कुछ पहलेसे ज्यादा है, फिर भी तुम्हे पहलेजितने लोग अब पूछते नही। ये है इन्फ्लेशन।"
....
जब शेयरबाजारमे सारे शेयरोंके भाव गिरने लगे, तब एक पतिने अपनी पत्नीसे कहा,
"बस तुमही मेरी ऐसी इन्व्हेस्टमेंट हो जो डबल हो गयी।"
....
पति, "तुम इस नादान कुत्तेको कभीभी आज्ञाकारी नही बना सकोगी।"
पत्नी, "इसमे वक्त लगता है, तुमभी पहले कहाँ मेरा कहा मानते थे?"
....
शादीकी रस्मोंमे पति और पत्नी एकदूसरेसे हाथ क्यों मिलाते हैं?
उसी तरह जैसे दो बॉक्सर्सभी बॉक्सिंग मॅचसे पहले हाथ मिलाते हैँ।
....
बीवीकी बातें सुनना किसी वेबसाइटकी टर्म्स अँड कंडीशन्स पढनेके बराबर है।
कुछभी समझमे तो आता नही, फिरभी "आय अॅग्री" करना पडता है।
....
पत्नी, "आज अपनी शादीकी सालगिरह हम कैसे मनायें?"
पती, "दो मिनट निःशब्द खडे होकर।"
....
बीबी, "ऐंजी, इतनी धीमी आवाजमें किससे बात कर रहे हो?"
मियाँ, "बहनसे"
बीवी, "बहनसे इस तरह फुसफुस करनेकी क्या जरूरत है?"
मियाँ, "तुम्हारी जो है।"
....
शौहर, "अगर मुझे लॉटरी लगी, तो तुम क्या करोगी?"
बीबी, "मै आधे पैसे लूँगी और तुम्हे छोड दूँगी।"
शोहर, "आज मुझे सौ रुपयेकी लॉटरी लगी है। ये लो पचास रुपये।"
.....
पत्नी, "तुम इतनी देरसे अपना मॅरेज सर्टिफिकेट क्यों गौरसे देख रहे हो?"
पति, "इसमें एक्स्पायरी डेट कहाँ लिखा है? उसे ढूँढ रहा हूँ।"
......
एक सर्वेके अनुसार सिर्फ बीस प्रतिशत आदमियोंके पास दिमाग होता है।
फिर औरोंके पास क्या होता है?"
.
.
.
.
उनके पास बीबी होती है।
.....
एक और सर्वेमे ये देखा गया है कि आदमियोंकी तुलनामे औरतें ज्यादा खुशहाल और लंबी जिंदगी जीती हैं।
.
क्यों?
.
क्योंकि उनकी कोई बीबी नही होती।
.....
ये भगवानभी कमालकी लीला करता है, महिलाऔंजैसे अनुपम बढिया जीव बनाता है,
और
उनको बीवियाँ बना देता है।
....
पत्नी, "मैने तुम्हारा नाम बालूपर लिखा, वो लहरोंसे मिट गया, हवापर लिखा वो उड गया, अपने हृदयपर लिखा तो हार्ट अटॅक आ गया।"
पति, "भगवानने जब देखा मै भूखा हूँ, उसने पिझ्झा बनाया, मै प्यासा हूँ, उसने कोकाकोला बनाया, जब मै अंधेरेमें हूं, उसने उजाला बनाया और जब उसने देखा कि मुझे कोई प्रॉब्लेम नही है ........ तब तुम्हे बनाया।"
.....
 स्वामी दुखियानंदजी के बोल
एक बीबी मियाँकी पूरी जिंदगी सुधार सकती है, मगर एक बीवीको सुधारनेके लिये पूरी जिंदगीभी कम है।
.....
बीबियाँ बडी जादूगरनी होती है .........वे किसीभी बातको आसानीसे विवादमें बदल सकती है।


Thursday 13 March 2014

मै शायर तो नही .....

मै शायर तो नही, मगर ऐ दोस्तों,
जबसे मैने फेसबुक खोला, उसपर मुझको, शायरी भा गयी।।

मिर्झा गालिब कहते हैं,
उम्रभर गालिब यही भूल करता रहा;
धूल चेहरे पर लगी थी, आईना साफ करता रहा।
ऐसे कहा जाता है,
हैं और भी जमानेमे सुकनवर बहुत अच्छे,
कहते हैं के गालिबका अंदाजे-बयाँ और।

इसमे कोई शक नही, मगर थोडा औरोंका बयान भी देख लेते हैं। मेरे जिन मित्रोंने ये शेर शेयर किये हैं उनका और सभी शायरोंका मै शुक्रगुजार हूँ।


ख्वाइशे, मर्जी
ख्वाइशोंका काफिला भी अजीब है
गुजरता वहींसे है जहाँ रास्ते नही होते।

ज़िंदगी पथराए भी तो ग़म नहीं,
इल्तिजा है मील का पत्थर बने.......
रूह (क्रांति)

हर मोड़ पर इंसान की मर्जी नहीं चलती
जब चलती है उसकी, तो किसी की नहीं चलती।

चलते है फकीरों के इशारो पे शहंशाह
शाहों के इशारो पे फकीरी नहीं चलती।

खुदा से मेरी सिर्फ़ एक ही है दुआ,
गर मैं वसीयत लिखूं उर्दू में, बेटा पढ़ पाए।
(आजके जमानेमे यह बात मराठी, कन्नड, तमिल आदि सभी भारतीय भाषाई लोग सोचते होंगे।)

दर्द
किन लफ्जोंमें बयाँ करूँ अपने दर्दको,
सुननेवाले बहुत हैं, समझनेवाला कोई नही।

हर सफ़र थम जाता है इक आख़िरी सफ़र के बाद।
हर दर्द मिट जाता है इक आख़िरी दर्द के बाद।
न जाने कैसा सुकून होगा मौत की पनाहों में।
कोई लौट के नहीं आता एक बार वहाँ जाने के बाद ।

परेशानी
परेशाँ होने वालों को सकून कुछ मिल भी सकता है,
परेशाँ करने वालों की परेशानी नहीं जाती।

एक बुत मैने तराशा हो, गई सबको खबर ...
शहर के पत्थर सभी अपना पता देने लगे ।

इन्सान घर बदलता है, लिबास बदलता है;
रिश्ते बदलता है, दोस्त बदलता है, फिर भी वो परेशान रहता है,
क्यो कि वो खुद नही बदलता।

कद्र
कद्र करनी है, तो जीतेजी करो,
जनाजा उठाते वक़्त तो नफरत करनेवाले भी रो पड़ते है।

जिंदगी
हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली।
कुछ यादें मेरे संग पांव पांव चली।
सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ।
वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली।।....

हर ख़ुशी से ख़ूबसूरत तेरी शाम कर दूँ,
अपना प्यार और दोस्ती तेरे नाम कर दूँ,
मिल जाए अगर दुबारा यह ज़िंदगी,
हर बार यह ज़िंदगी तुम्हारे नाम कर दूँ ।

गजब
ग़ज़ब की एकता देखी मैंने ,लोगों की ज़माने में।
जो ज़िंदा हैं उसे गिराने की और जो मुर्दा हैं उसे उठाने की ।

इस दुनिया के लोग भी कितने अजीब है ना ;
सारे खिलौने छोड़ कर जज़बातों से खेलते हैं ।

 जितनी भीड़ , बढ़ रही ज़माने में..।
लोग उतनें ही, अकेले होते जा रहे है।।।

 खुद्दारी
 टूटा ज़रूर हूँ मगर बिखरा नहीं अभी तक
किस चीज से बना हूँ मुझको ख़बर नहीं |

हर हकीकत को मेरी ख्वाब समझने वाले,
मैं तेरी नींद उड़ाने के लिये काफी हूँ।

ये अलग बात के अब सुख चुका हूँ फिर भी,
धूप की प्यास बुझाने के लिये काफी हूँ।

हम वक्त और हालात के  साथ 'शौक' बदलते हैं,,
दोस्त नही ... !!

होशियारी
सभी तजुर्बों को जहन में उतारना जरूरी नहीं।
गैरों की गलतियों के सबक कब काम आएँगे।।

दोस्त और दुष्मन
भगवान से वरदान माँगा कि दुश्मनों से पीछा छुड़वा दो,
अचानक दोस्त कम हो गए  ।।

दुष्मनोंकी मेहफिलमें चल रही थी मेरे कत्लकी बात ।
मैं पहूँचा तो वो बोले यार तेरी उम्र लंबी है।

मेरी पीठ पर जो जख्म हैं ,वो अपनों की निशानी हैं !
....सीना तो, अभी तक दुश्मनों के इंतज़ार में है !!

दोस्तों के साथ जीने का इक मौका दे दे ऐ खुदा,
तेरे साथ तो हम मरने के बाद भी रह लेंगे ।

कुछ दोस्तों से वैसे मरासिम(relationship) नहीं रहे।
कुछ दुश्मनों से वैसी अदावत(enimity) नहीं रही।
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग।
रो रो के बात कहने की आदत नहीं रही।

बोझ
किनारे पर तैरने वाली लाश को देखकर ये समझ आया...
बोझ शरीर का नही साँसों का था...



Sunday 9 March 2014

अगर चार चीजें होती और चार चीजें ना होती l

एक बार किसी भक्तने प्रभूसे कहा,
हे भगवान, इस दुनियामे अगर चार चीजें होती और चार चीजें ना होती तो कितना अच्छा होता !
जिंदगी होती और मौत ना होती।
स्वर्ग होता और नरक ना होता।
दौलत होती और गरीबी ना होती।
सेहत होती और बीमारी ना होती।

इसपर परमात्माकी आवाज सुनाय़ी दी,
मेरे प्रिय भक्त,
अगर मौत ना होती तो कोई मेरे पास कैसे आता?
अगर नरक ना होता तो मुझसे कौन डरता?
अगर गरीबी ना होती तो मेरा शुक्रिया कौन अदा करता?
और अगर बीमारी ना होती तो मुझे याद कौन करता?

Friday 7 March 2014

जागतिक महिला दिन


किसीभी पुरुषने कहे हुए सबसे अच्छे वचन

मै जब पैदा हुवा, उसने मुझे अपने सीनेसे लगाया ... वह मेरी माँ
बचपनमे उसने मेरी हिफाजत की, वह मेरे साथ खेलती थी .. वह मेरी बहन
मै विद्यालयमे पढता था तब वह मुझे ज्ञान सिखाती थी ... वह मेरी शिक्षिका
जब मै हतोत्साह होता था तब वह मेरा हौसला बढाती थी .. वह मेरी सहेली
उसने मेरा साथ निभाया, मुझसे प्यार किया ... वह मेरी पत्नी
उसने मेरी निष्ठुरताको मोमकी तरह पिघला दिया ... वह मेरी बेटी
मै जब इस दुनियामे नही रहूँगा तब उसीमे समा जाऊंगा .. मेरी मातृभूमी

आप आदमी हो तो स्त्रीका महत्व जान लीजिये और औरत हो तो अपने स्त्रीत्वपर गर्व कीजिये। 

Wednesday 26 February 2014

बारा ज्योतिर्लिंग

द्वादशज्योतिर्लिङ्गानि

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम् ॥१॥

परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥२॥

वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये ॥३॥

एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रात: पठेन्नर:।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ॥४॥


बारा ज्योतिर्लिंगोंके स्थान
१.सोमनाथ ....सौराष्ट्र .... गुजरात
२.मल्लिकार्जुन ..श्रीशैल्य ... आंध्रप्रदेश
३.महाकाल ... उज्जैन ... मध्यप्रदेश
४.ममलेश्वर .. ओंकारेश्वर .. मध्यप्रदेश
५.वैद्यनाथ ... परळी .... महाराष्ट्र
६.भीमाशंकर .. डाकिनी(पुण्याजवळ) महाराष्ट्र
७.रामेश्वर ... सेतुबंध .... तामिलनाडु
८.नागेश्वर ... दारुकावन (औंढ्या नागनाथ) महाराष्ट्र
९.विश्वेश्वर ... वाराणसी ... उत्तर प्रदेश
१०.त्र्यंबकेश्वर .. नाशिक जवळ . महाराष्ट्र
११.केदारनाथ .. हिमालय .. उत्तरांचल
१२.घृष्णेश्वर ... वेरूळ ... महाराष्ट्र

निर्वाण षटकम्

आदिशंकराचार्यजीने लिखा निर्वाणषटकम् एक अप्रतिम स्तोत्र या काव्य है।

मै कौन हूँ? इस प्रश्नका उत्तर हम ढूँढते रहते हैं। क्या मेरी आँखे, कान, नाक, जिव्हा आदिसे बना शरीर मै हूँ?
क्या जमीन, जल, वायू, तेज आदि जिन तत्वोंसे ये शरीर बना है वो मै हूँ? क्या मेरा दिमाग, मन, अहंकार मै
हूँ? मै ये सब नही हो सकता क्योंकि ये चीजे मेरी है ऐसे मै मानता हूँ। फिर मै हूँ माने मै क्या हूँ?
इत्यादि अनेक प्रश्नोंका उत्तर श्रीमद् शंकराचार्य देते हैं कि मै इसमेंसे कुछ भी नही हूं, इन सभी चीजोंसे परे, या
उनके ऊपर जो असीम आनंद और मंगलमय परमात्मा है वह मै हूँ। मुझे सुखदुख, राग, लोभ, मोहमाया, पापपुण्य, भेदभाव आदि कुछ माने नही रखता। मातापिता, भाईबहन, गुरुशिष्य आदि मेरे कोई रिश्तेदार नही है। इतनाही नही, मै न किसी बंधनमे हूँ, ना मुक्त हूँ। मेरा ना कोई आकार है, ना रूप है, ना रंग है।

ये सब समझना बहुत मुश्किल है, मगर थोडा भी पल्ले पडे तो वह चौंका देनेवाला है।

निर्वाण षटकम्
मनोबुद्ध्यहंकार चित्तानि नाहं ।  न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रौ।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः। चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। १ ।।

न च प्राणसंज्ञो न वै पंचवायुः । न वा सप्तधातुः न वा पञ्चकोशः।
न वाक्पाणिपादम् न चोपस्थपायु । चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। २ ।।

न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ । मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः । चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। ३ ।।

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं । न मन्त्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता । चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। ४ ।।

न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः । पिता नैव माता नैव न जन्मः।
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यः । चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। ५ ।।

अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो । विभुत्वाच सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्।
न चासङ्गत नैव मुक्तिर्न बन्धः । चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ।। ६ ।।

शिवतांडवस्तोत्र


दशहरेके दिन रावणका दहन किया जाता है। उसे सारी अपप्रवृत्तियोंका पुतला मानकर जलाया जाता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर इन छह अंतर्गत दुष्मनोंके, याने षड्रिपुओंके प्रभावके प्रभावकी वजहसे उसने कुछ बहुतही घटिया दुष्ट कृत्य किये थे। मगर उसके व्यक्तित्वका यह एक अंग है।

रावण एक बहादुर और लोकप्रिय राजा भी था। उसके आधिपत्यमे लंकामे स्वर्णयुग आया था। उसके बारेमे लिखे गये कुछ तथ्य, जैसे उसके दस मस्तक होना, अवास्तव है, मगर उसने लिखा हुवा शिवतांडवस्तोत्र उसकी प्रतिभा और पांडित्यका नमूना है।

आज भी यह स्तोत्र उपलब्ध है। इस स्तोत्रको अनेक गायकोंने गाया भी है। उनका गायन सुननेसे इस स्तोत्रकी नादमधुरता स्पष्ट होती है। रावणको संस्कृत भाषा तथा संगीतकला दोनों अच्छी तरहसे अवगत थी इसका यह स्तोत्र एक प्रमाण है।
पं.जसराजजी की आवाजमे शिवतांडवस्तोत्र
http://mp3ruler.com/mp3/shiv_tandav_stotram_pandit_jasraj.html

अन्य गायकोंकी आवाजमे
http://www.youtube.com/watch?v=PoSiBnnvMw0
http://www.youtube.com/watch?v=yZa0gble8EI
http://www.youtube.com/watch?v=9E_HG0fAYEM

रावणकी प्रशंसा करना या उसे अच्छा कहना यह मेरा उद्देश नही है। वह बुराईका प्रतीक तो था ही, मगर उसकी धार्मिक कृती अगर अच्छी लगे तो उसमे कोई बुराई नही होगी।

 महाशिवरात्रीके अवसरपर यह संस्कृत स्तोत्र और उसका हिंदी अनुवाद  प्रस्तुत कर रहा हूँ।  

॥ रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र ॥  

जटाटवीग लज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डम न्निनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥१॥

सघन जटामंडल रूप वन से प्रवाहित होकर श्री गंगाजी की धाराएँ जिन शिवजी के पवित्र कंठ प्रदेश को प्रक्षालित (धोती) करती हैं, और जिनके गले में लंबे-लंबे बड़े-बड़े सर्पों की मालाएँ लटक रही हैं तथा जो शिवजी डमरू को डम-डम बजाकर प्रचंड तांडव नृत्य करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्याण करें।

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥२॥

अति अम्भीर कटाहरूप जटाओं में अतिवेग से विलासपूर्वक भ्रमण करती हुई देवनदी गंगाजी की चंचल लहरें जिन शिवजी के शीश पर लहरा रही हैं तथा जिनके मस्तक में अग्नि की प्रचंड ज्वालाएँ धधक कर प्रज्वलित हो रही हैं, ऐसे बाल चंद्रमा से विभूषित मस्तक वाले शिवजी में मेरा अनुराग (प्रेम) प्रतिक्षण बढ़ता रहे।

धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।
कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

पर्वतराजसुता के विलासमय रमणीय कटाक्षों से परम आनंदित चित्त वाले (माहेश्वर) तथा जिनकी कृपादृष्टि से भक्तों की बड़ी से बड़ी विपत्तियाँ दूर हो जाती हैं, ऐसे (दिशा ही हैं वस्त्र जिसके) दिगम्बर शिवजी की आराधना में मेरा चित्त कब आनंदित होगा।

जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।
मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥४॥

जटाओं में लिपटे सर्प के फण के मणियों के प्रकाशमान पीले प्रभा-समूह रूप केसर कांति से दिशा बंधुओं के मुखमंडल को चमकाने वाले, मतवाले, गजासुर के चर्मरूप उपरने से विभूषित, प्राणियों की रक्षा करने वाले शिवजी में मेरा मन विनोद को प्राप्त हो।

सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥५॥

इंद्रादि समस्त देवताओं के सिर से सुसज्जित पुष्पों की धूलिराशि से धूसरित पादपृष्ठ वाले सर्पराजों की मालाओं से विभूषित जटा वाले प्रभु हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।

ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌ ।
सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥६॥

इंद्रादि देवताओं का गर्व नाश करते हुए जिन शिवजी ने अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया, वे अमृत किरणों वाले चंद्रमा की कांति तथा गंगाजी से सुशोभित जटा वाले, तेज रूप नर मुंडधारी शिवजीहमको अक्षय सम्पत्ति दें।

कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥७॥

जलती हुई अपने मस्तक की भयंकर ज्वाला से प्रचंड कामदेव को भस्म करने वाले तथा पर्वत राजसुता के स्तन के अग्रभाग पर विविध भांति की चित्रकारी करने में अति चतुर त्रिलोचन में मेरी प्रीति अटल हो।

नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥

नवीन मेघों की घटाओं से परिपूर्ण अमावस्याओं की रात्रि के घने अंधकार की तरह अति गूढ़ कंठ वाले, देव नदी गंगा को धारण करने वाले, जगचर्म से सुशोभित, बालचंद्र की कलाओं के बोझ से विनम, जगत के बोझ को धारण करने वाले शिवजी हमको सब प्रकार की सम्पत्ति दें।

प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा-
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥

फूले हुए नीलकमल की फैली हुई सुंदर श्याम प्रभा से विभूषित कंठ की शोभा से उद्भासित कंधे वाले, कामदेव तथा त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दुखों के काटने वाले, दक्षयज्ञविध्वंसक, गजासुरहंता, अंधकारसुरनाशक और मृत्यु के नष्ट करने वाले श्री शिवजी का मैं भजन करता हूँ।

अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌ ।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥

कल्याणमय, नाश न होने वाली समस्त कलाओं की कलियों से बहते हुए रस की मधुरता का आस्वादन करने में भ्रमररूप, कामदेव को भस्म करने वाले, त्रिपुरासुर, विनाशक, संसार दुःखहारी, दक्षयज्ञविध्वंसक, गजासुर तथा अंधकासुर को मारनेवाले और यमराज के भी यमराज श्री शिवजी का मैं भजन करता हूँ।

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-
द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥

अत्यंत शीघ्र वेगपूर्वक भ्रमण करते हुए सर्पों के फुफकार छोड़ने से क्रमशः ललाट में बढ़ी हुई प्रचंड अग्नि वाले मृदंग की धिम-धिम मंगलकारी उधा ध्वनि के क्रमारोह से चंड तांडव नृत्य में लीन होने वाले शिवजी सब भाँति से सुशोभित हो रहे हैं।

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥

कड़े पत्थर और कोमल विचित्र शय्या में सर्प और मोतियों की मालाओं में मिट्टी के टुकड़ों और बहुमूल्य रत्नों में, शत्रु और मित्र में, तिनके और कमललोचननियों में, प्रजा और महाराजाधिकराजाओं के समान दृष्टि रखते हुए कब मैं शिवजी का भजन करूँगा।

कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्‌
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌ ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥

कब मैं श्री गंगाजी के कछारकुंज में निवास करता हुआ, निष्कपटी होकर सिर पर अंजलि धारण किए हुए चंचल नेत्रों वाली ललनाओं में परम सुंदरी पार्वतीजी के मस्तक में अंकित शिव मंत्र उच्चारण करते हुए परम सुख को प्राप्त करूँगा।

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥

देवांगनाओं के सिर में गूँथे पुष्पों की मालाओं के झड़ते हुए सुगंधमय पराग से मनोहर, परम शोभा के धाम महादेवजी के अंगों की सुंदरताएँ परमानंदयुक्त हमारेमन की प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहें।

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥१५।।

प्रचंड बड़वानल की भाँति पापों को भस्म करने में स्त्री स्वरूपिणी अणिमादिक अष्ट महासिद्धियों तथा चंचल नेत्रों वाली देवकन्याओं से शिव विवाह समय में गान की गई मंगलध्वनि सब मंत्रों में परमश्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित, सांसारिक दुःखों को नष्ट कर विजय पाएँ।

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌ ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥१६॥

इस परम उत्तम शिवतांडव श्लोक को नित्य प्रति मुक्तकंठ सेपढ़ने से या श्रवण करने से संतति वगैरह से पूर्ण हरि और गुरु मेंभक्ति बनी रहती है। जिसकी दूसरी गति नहीं होती शिव की ही शरण में रहता है।

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥

शिव पूजा के अंत में इस रावणकृत शिव तांडव स्तोत्र का प्रदोष समय में गान करने से या पढ़ने से लक्ष्मी स्थिर रहती है। रथ गज-घोड़े से सर्वदा युक्त रहता है।

॥ इति शिव तांडव स्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

Sunday 23 February 2014

मंगल मंगल - ६



सौ साल पहले वैज्ञानिकोंने जब दूरबीनके जरिये मंगल ग्रहका अवलोकन किया, तब उन्हे वहाँपर कुछ सीधी रेखाएँ दिखाई दी थी। नदियाँ, पहाड, घाटी आदि जो भी कुदरती रचनाएँ हैं वे अपनी धरतीपर तो कहीं भी सीधी रेखामे नही हैं। दुनियाके किसी भी देशके मानचित्रमें (मॅप) ये सारे टेढेमेढेही दिखते हैं। फिर मंगल ग्रह पर भला वे सीधे कैसे हो सकते हैं? वहाँके बुद्धीमान महामानवोंने जरूर बडे बडे नहर खोदे होंगे इस तरहका अनुमान किसीने लगाया और अन्य सभी लोगोंको यह खयाल बडा अच्छा लगा। यह अफवाह कई सालतक सुनाई जाती थी। वास्तवमे ये रेखाएँ वहाँ मौजूदही नही है, यह एक दृष्टीभ्रम था यह उसकी सचाई अब सामने आ चुकी है। यह भी एक किस्मका मृगजल (माइरेज) था, नजरका धोखा था, मगर एक जमानेमे वह बडे वैज्ञानिकोंको चकमा दे गया था।

अगर कोई व्यक्ती वक्तका बहुतही पाबंद हो तो कहते हैं कि उसके आने जानेको देखकर अन्य लोग अपनी घडी मिलाते हैं। सूरज और चंद्रमाका आसमानमे दिखता अविरत भ्रमण इसी तरह बहुतही नियमित होनेकी वजहसे कालगणनाकी शुरुवातही उन्हे देखकर की जानी लगी और यह सिलसिला आजतक चलता आया है। बुध, गुरू, शुक्र और शनि ये ग्रह अपनी चाल कभी धीमी या तेज करते हैं, कभी एक स्थानपर रुक जाते हैं, या कई दिन उलटी दिशामे चलने लगते हैं। इनमे बुध तथा शुक्र आसमाँमे रातके कम समयमेंही दिखाई देते हैं और गुरू तथा शनि ग्रह बहुतही धीमी गतीसे एकही राशीमें सालोंसाल चलते हैं। इन कारणोंकी वजहसे इन चार ग्रहोंकी अनियमितता स्पष्ट रूपसे कम दिखाई देती है। मंगल ग्रह उनकी तुलनामे कुछ ज्यादा अनियमित है और उसकी टेढी चाल कुछही दिनोंके अवलोकनमे स्पष्ट रूपसे दिखाय़ी देती है। उसकी गती कम या ज्यादा होती रहती है ही, उसका आकार भी कभी छोटा या बडा होता दिखता है, इशी तरह उसकी रोशनी भी कम या जादा होती दिखती है। कभी यह ग्रह अन्य ग्रहोंकी तुलमाने बहुत तेजःपुंज दिखता है, तो कभी बहुत निस्तेजसा लगता है। उसके इस नटखटपनकी वजहसे उसने प्राचीन वैज्ञानिकोंको असमंजसमे डाल रखा था, मंगल ग्रहमे इतना जादा फर्क किस वजहसे होता होगा ये बात उनके समझमे नही आती थी। उसका ढंगसे अध्ययन करना बहुत कठिन लगता था।

भारतीय संस्कृतीमे सभी ग्रहोंको देवता मानकर उनकी पूजा की जाती है। अर्थात वे सभी अपनी मर्जीके मालिक हैं, उन्हे जैसा लगे वैसे वे भ्रमण करें, उन्हे पूछनेवाले हम कौन होते हैं? अधिकांश लोग इस तरहसे सोचते हैं।  ये सारे ग्रह अपने भाग्यविधाताभी है, अपने किस्मकी बागडोर उनके हाथोंमे है ऐसे जो लोग मानकर चलते हैं, वे भला उनके बारेमे कोई सवाल करनेकी उद्दंडता कैसे कर सकते है? मंगल तो भयानक शीघ्रकोपी किस्मका ग्रह है ऐसी धारणा बनी है। फिर वो तो टेढाही चलेगा ना? उसे कौन टोकेगा? शायद इन वजहोंसे भारतीय वैज्ञानिकोंने उस दिशामे कोई प्रयास नही किया होगा। य़ुरोपीय देशोंमे ख्रिश्चन धर्मके प्रसारके बाद वे लोग सिर्फ एक परमेश्वर (गॉड)को मानने लगे। तब किसी ग्रहसे डरना कम हो गया। चार पाँच सदी पहले वहाँके कुछ वैज्ञानिकोंने मंगल ग्रहका बारीकीसे अध्ययन करनेकी शुरुवात की। कई साल कई वैज्ञानिकोंद्वारा इन्ही निरीक्षणोंपर सोचविचार, मनन, चिंतन वगैरा करनेके बाद उसके बारेमें कुछ सुसंगत सिद्धांत स्पष्ट हो गये। आम आदमी जैसे महसूस करता है उस तरह सूरज और अन्य ग्रह पृथ्वीकी परिक्रमा नही करते है, यह केवल एक दृष्टीभ्रम है, असलमे पृथ्वी, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र और शनि सूरजकी परिक्रमा करते रहते हैं यह सत्य सभीने मान लिया। यह होते होते दो सौ सालका समय बीत चुका था।

पृथ्वी सूरजकी एक विशिष्ट गतीसे परिक्रमा करती रहती है और चंद्रमा पृथ्वीकी। उनकी गतिमे कुछ बहुतही सूक्ष्म बदलाव आते हैं। आम आदमी उन्हे महसूस कर नही सकता। बाकी सारे ग्रह अलग अलग राहोंपर चलते हुवे सूरजकी प्रदक्षिणा करते हैं। इस दौरान वे कभी एक दूसरे के पास आने लगते हैं या दूर जाते रहते हैं। उनकी भ्रमणकी गतियाँ भी अलग अलग हैं। इन वजहोंसे पृथ्वीसे देखनेपर उनके भ्रमणमे अनियमितता दिखती है।

 . . . . . . . . . . . .  . ..  . . . . . .. . .  (क्रमशः)

Saturday 15 February 2014

थोडा हँस ले।


भिक्षुक - माई भिक्षा दे. 
महिला  - ले लो महाराज...
भिक्षुक - माई ... ज़रा यह द्वार पार करके बाहर तो आना.
वह द्वार पार करके बाहर आती है. 
भिक्षुक - (उसे पकड़ते हुए ) हा .. हा ... हा ... मैं भिक्षुक नहीं, रावण हूं....
महिला - हा .. हा ... हा ... मैं भी सीता नहीं, कामवाली बाई हूँ  
😜😜😜😊😊
रावण : हा..हा..हा.. सीता का अपहरण करके आज तक पछता रहा हूं, तुम्हें ले जाऊंगा तो मंदोदरी खुश हो जायेगी. मुझे भी कामवाली बाई की ही ज़रूरत है.. 
😅
महिला : हा  हा हा , सीता  को  ढूंढने  सिर्फ राम आऐ थे।
मुझे  ले जाओगे तो  सारी  बिल्डिंग
ढूंढते पहुंच  जाएगी ।।
😈😈😈😈😈

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आजका हिंदी ज्ञान
एअर होस्टेस - हवाई सुंदरी 
नर्स - दवाई सुंदरी
लेडी टीचर - पढाई सुंदरी
हाउस मेड - सफाई सुंदरी
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और
बीवी - लडाई सुंदरी




एक शक्स पहले काला, मोटा और नाटा था।
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उसने टेलीशॉपिंगसे कुछ प्रॉडक्ट्स खरीद लिये।
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अब वह शक्स बेवकूफ भी है।

Wednesday 12 February 2014

मंगल मंगल - ५

नववर्षके दिन मैने यह ब्लॉग शुरू कर दिया, मगर कुछ दिन नियमित रूपसे यहाँ लिखनेके बाद मैं किन्ही अन्य मामलोंमे उलझ गया और बहुत दिन तक यहाँ नही  आ पाया। अब थोडीसी फुरसत मिली है तो अधूरी रखी हुई मंगल मंगल इस लेखमालाका अगला पुष्प समर्पित कर रहा हूँ।  इस दौरान  दो सौसे अधिक पाठकोंने यह ब्लॉग पढा है। मै उनका आभारी हूँ।

मंगल ग्रहका पृष्ठभाग याने उसकी जमीन भी पृथ्वीकी तरह पथराली है, वहाँ भी जमीनके ऊपर वातावरण है, मगर वह बहुत विरल है और उसमे ज्यादा तर कार्बन डायॉक्साईड वायू है। मंगल ग्रहका व्यास (डायामीटर) पृथ्वीके व्यासके आधेसे कुछ ज्यादा है। भूमितीके नियमोंके अनुसार उसका क्षेत्रफल (एरिया) पृथ्वीके क्षेत्रफलके चौथे हिस्सेसे थोडा ज्यादा है और उसका घनफल पृथ्वीके घनफलके आठवे हिस्सेसे कुछ ज्यादा याने करीब सातवा हिस्सा है। मगर मंगल ग्रहकी घनता काफी कम होनेकी वजहसे उसका वस्तुमान (मास) पृथ्वीके नौवे हिस्से जितना ही है। इसके चलते मंगल ग्रहकी सतहपर पृथ्वीकी तुलनामे तीन अष्टमांश इतना गुरुत्वाकर्षण होता है। जो आदमी पृथ्वीपर तीन फीट ऊँची छलाँग लगा सकता है वह मंगलके जमीनपर आठ फीट ऊँची दीवारको कूदकर पार कर सकेगा। मंगल ग्रहके छोटे होनेके बावजूद वहाँ भी हिमालयसे भी ऊँचे परबत और बहुत गहरी खाइयाँ है। आजके युगमे मंगल ग्रहपर द्रवरूप पानी न होनेके कारण वहाँ जलसे भरे सागर, नदियाँ या सरोवर नही है। समुंदरके न होनेसे वहाँ का मीन सी लेव्हल निश्चित किया नही जा सकता तथा उसकी तुलनामे पर्वतीय शिखरोंकी ऊँचाई या खाइयोंकी गहराई नापी नही जा सकती। मंगल ग्रहपर कई जगहोंके पत्थरोंमे लोहेके खनिज हेमेटाइटकी मात्रा अधिक होनेकी वजहसे यह ग्रह दूरसे लाल रंगका दिखाई देता है। मगर दूरबीनसे देखनेपर उसके कुछ हिस्से पीले, हरे या सुनहले रंगोंकी छटा भी दिखाई देती है। मंगल ग्रहपर भी कई ज्वालामुखी पर्वत और रेगीस्तानभी दिखाई देते हैं। वैसे देखा जाये तो सारा ग्रह सूना सा है, उसपर कहीं भी तनिक भी हरियाली या जंगल है ही नही। जिस प्रदेशमे पत्थरोंकी जगह रेत दिखाई देती हो उसे शायद रेगिस्तान मानते होंगे।

मंगल ग्रह भी पृथ्वीकी तरह एक चक्रकी तरह खुदके अक्षपर घूमते हुवे सूर्यकी प्रदक्षिणा करता रहता है। वहाँ का एक दिन २४ घंटेसे आधा घंटा बडा होता है। याने मंगल ग्रहपर भी लगभग अपने जैसेही दिन और रातें होती हैं। मगर यह ग्रह पृथ्वीकी तुलनामे सूरजसे लगभग डेढ गुना दूर होनेकी वजहसे उसे सूरजकी परिक्रमा करनेके लिये करीब दो सालका अवधी लग जाता है। इस ग्रहका अक्ष भी पृथ्वीकी तरह टेढा होनेसे वहाँके दिन और रातोंकी अवधि भी घटती या बढती रहती है और वहाँ भी सर्दी या गरमी के मौसम आते रहते हैं। मगर वहाँपर सिर्फ यही दो ऋतू होते हैं। मंगलकी जमीनपर पानीके न होनेसे वहाँ कभी बरसात होती ही नही, न तो सावन आता है, न तो भादों। मंगल ग्रहके उत्तर और दक्षिण ध्रुवप्रदेश भी हमेशा बहुत ज्यादा ठंडेही रहते हैं और हमेशाबरफसे ढके रहते हैं, मगर यह बरफ पानीसे बना नही होता। वहाँकी हवामेंसे कार्बन डायॉक्साइड वायू जमकर सूखे बरफ (ड्राय आईस) की कई परते वहाँपर जमा हो गयी हैं। मंगल ग्रह सूरजसे दूर होनेकी वजहसे उसे मिलनेवाली रौशनी और प्रकाश पृथ्वीकी तुलनामे आधेसे भी कम है। इसलिये वहाँकी हर जगहका तापमान शू्न्य अंश सेल्सियससे कम होनेसे वहाँ द्रवरूप पानी हो ही नही सकता। मगर वहाँ की कुछ खाइयोंमे जमीनके बहुत नीचे जमा हुवा पानी है ऐसा अनुमान है। मंगलकी हवामेंभी कुछ हिमकण मिले हैं। 

हर वर्ष जाडेकी ऋतूमें अपने हिमालय परबतपर बर्फकी बारिश होती है और वहाँके पहाड नये बरफसे ढके जाते हैं। गरमीके मौसममें हिमालयके बरफका कुछ अंश पिघलकर उसका पानी गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र आदि नदीयोंमे आकर उनमें बाढ आती है। मंगल ग्रहके उत्तर और दक्षिण ध्रुवप्रदेशमें आधा वर्ष दिन और आधा बरस रात होती है, मगर वहाँका आधा वर्ष हमारे दस महीनोंसे भी लंबा होता है। वहाँके दिनके लंबे समयमे कुछ सूखा बरफ पिघलकर वहाँके वातावरणमें कार्बन डायॉक्साइड वायू मिल जाता है और वहाँकी लंबी काली रातोंमें कार्बन डायॉक्साइड वायू जमकर उसकी याने सूखे बरफकी नयी परते जमीनपर छा जाती हैं।

सौ साल पहलेके जमानेमे मंगल ग्रहके बारेमे इससे बहुत जादा जानकारी नही थी। फिरभी पृथ्वीकी तरह मंगल ग्रहपर भी दिन और रात, सर्दी और गरमी, जमीन और हवा वगैरा होती है, इससे इतना तो साबित हो गया था कि यह ग्रह कुछ हदतक पृथ्वीजैसा ही होगा। अगर ऐसा हो तो उस जगहभी सजीवोंकी सृष्टी निर्माण होना संभवनीय लगता था। वैज्ञानिकोंके इस अनुमानने विज्ञानकथा (सायन्स फिक्शन) लिखनेवाले लेखकोंकी प्रतिभाको मानों पंख मिल गये, उनकी कल्पनाशक्तीको बहर आ गया और मंगलवासीयोंके जीवनपर लिखे गये कथा और उपन्यासोंकी बारिश होने लगी। क्या ये मंगलवासी दिखनेमे मानवोंजैसे होंगे? क्या उन्हेंभी मानवोंजैसेही हाथ, पैर, नाक, कान, आँखे वगैरा सारे अवयव होते होंगे? होगे तो उतनेही होंगे या उनकी संख्या कम या ज्यादा होगी? शायद उनके कुछ भिन्न प्रकारके अंग होंगे और हमें जिसका अनुमानही ना हो इस तरहकी संवेदनाएँ उन्हे प्राप्त होती होंगी। इस तरहके सैकडो सवाल उन लेखकोंके मनमे उठे थे और अपनी अपनी सोचके अनुसार उनके जवाब उन्होंने सोचकर उन्हे अपनी रचनाओंके जरिये प्रस्तुत किया था। तश्तरीके आकारके उडनखटोलोंमे बैठकर कुछ मंगलवासीयोंने पृथ्वीवर आवागमन किया, यहाँके कुछ लोगोंने उनके यानोंको जमीनपर उतरते या हवामे उडते हुवे देखा इस तरहकी अफवाहे कई बार फैली थी ।

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